लाज़िमी बातों को नहीं मानता
lazimi baton ko nahin manata
सौरभ सिंह क्रांतिकारी
Saurabh Singh Krantikari
लाज़िमी बातों को नहीं मानता
lazimi baton ko nahin manata
Saurabh Singh Krantikari
सौरभ सिंह क्रांतिकारी
और अधिकसौरभ सिंह क्रांतिकारी
संघर्षों के कपूर पर जल रहे हवन को आहुतियाँ
देना लाज़िमी है
जीवन-पथ पर परिवर्तन को स्वीकारा जाए
उसी प्रेम से जैसे माँ के हाथों के खाने के बाद,
प्रेमिका के हाथों के खाने के स्वाद को
स्वीकारा जाता है समान स्नेह से
कविता में मेरी भाषा खुरपी से प्रेरित है
जो खोदना जानती है निर्लज्जता के संग
शोषित के हिस्सों की भूख की घास
जब आकाश जान जाता है अपने ख़ालीपन को
तो बादल स्वछंद हो बरस पड़ते हैं
ये भी लाज़िमी है
सवाल लाज़िमी बातों का नहीं?
कभी था ही नहीं?
सवाल है!
क्यों लाज़िमी है?
एक चरित्रहीन का चरित्र पर व्याख्यान
क्यों लाज़िमी है?
एक हवस के राक्षस का प्रेम पर उपदेश?
क्यों मवालियों-वबालियों की
सत्ता का स्वीकारा जाना लाज़िमी हुआ?
क्यों विधर्मियों को धर्म की मठाधीशी
सौंपी जाए लाज़िमी होकर?
आख़िर क्यों हर मुखर स्वर का
एक वक़्त के बाद दब जाना
या दबा दिया जाना लाज़िमी है?
आख़िर क्यों कोई अभिमन्यु
इस लाज़िमी के चक्रव्यूह को
भेदना नहीं सीख पाया?
भले आख़िरी द्वार पर उसे वीरगति प्राप्त होती
पर कोई तो साहस करता इस द्वंद-युद्ध को
अंतिम चरण में ले जाने का
जब नहीं दिखती कोई आशा कि किरण
तब मैं क़लम चलाता हूँ
सवाल उठाता हूँ
दुत्कारा जाता हूँ
नकारा जाता हूँ
मारा जाता हूँ
पर मैं इन लाज़िमी बातों को स्वीकार नहीं करता
मैं पीठ पीछे से कभी वार नहीं करता
- पुस्तक : सोया हुआ शहर (पृष्ठ 99)
- रचनाकार : सौरभ सिंह क्रांतिकारी
- प्रकाशन : अधिकरण प्रकाशन
- संस्करण : 2023
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