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लानत-ए-कविता जहाँ तक पहुँचे… पहुँचे

lanat e kavita jahan tak pahunche…pahunche

आमिर हमज़ा

आमिर हमज़ा

लानत-ए-कविता जहाँ तक पहुँचे… पहुँचे

आमिर हमज़ा

और अधिकआमिर हमज़ा

    वे अच्छे कवि नहीं थे…

    अच्छे कवि होने की तमाम प्रचलित परिभाषाओं में स्वीकृत

    वे समझदार थे…दुनियावी जालसाज़ी से भरपूर

    उनकी लगभग कविताएँ बकवास होने की संभावनाओं से भरी हुई थी।

    उनका अपना कहन था…मुखौटा लगाए बाँचता हुआ फ़रेबी ज़बान

    यह शब्दों को वाक्यों में बेवजह ख़र्च करना था।

    वो बारिश पर लिखते बारिश से दीखते थे…

    बावजूद इसके वो बारिश नहीं थे।

    वो फूल पर लिखते फूल से दीखते थे…

    बावजूद इसके वो फूल नहीं थे।

    उनकी कविताएँ काँटों की तौहीन थी।

    वो सड़क पर चलते लेकिन सड़क का भयावह उनकी कविताओं का विषय नहीं था।

    वो अख़बार पढ़ते लेकिन अख़बार की मवाद उनकी कविताओं का विषय नहीं था।

    वो रेड लाइट होने पर सड़क के बीचो-बीच करतब दिखाते बच्चों से वाक़िफ़ थे।

    बच्चों की आँखों में ग़रीबी का स्याह उनकी कविताओं का विषय नहीं था।

    वो फ़लस्तीन पर इस्राइली हैवानियत से वाक़िफ़ थे

    मृत पड़े बच्चे के हाथ चूमती माँ के आँसू।

    अपने नन्हें बच्चे के पैर का विदारुपी बोसा लेते बाप की रुलाई।

    कफ़न में लिपटे एक पाँच वर्षीय बच्चे मुहम्मद हनी अल-ज़हर का मुँह खोले तकना आसमान को।

    माँ के गर्भ में बच्चे जो जन्मे असमय मृत।

    अभी अभी दफ़नाए गए बच्चे की क़ब्र की ताज़ा मिट्टी। बमबारी में ध्वस्त हुए लोगों के चीथड़े अब जिनके हाथ बचे हैं पैर।

    कफ़न से भरा मैदान जिसे फलों-फूलों से भरा बगीचा होना था।

    ख़ून सने ख़ूब-ख़ूब चेहरे जिन पर लिखा है बेकसूर…उनकी कविताओं का विषय नहीं था।

    वो यूक्रेन से वाक़िफ़ थे

    दर्द विस्थापन का उनकी कविताओं का विषय नहीं था।

    वो मुल्क के मुख़्तलिफ़ हिस्सों में बलात्कार करके फेंक दी गई लड़कियों की ख़बर से वाक़िफ़ थे

    बलत्कृत लड़कियों की चीख़ उनकी कविताओं का विषय नहीं था।

    वो मॉब लिंचिंग से वाक़िफ़ थे

    घुटनों के बल सड़क के बीचो-बीच पड़ा एक टोपी पहना लहूलुहान मुसलमान उनकी कविताओं का विषय नहीं था।

    वो राजधानी के उत्तर-पूर्वी इलाक़े के रिक्शों पर बैठने से वाक़िफ़ थे

    रिक्शा खींचते सूज गए पैर पर पड़े छाले उनकी कविताओं का विषय नहीं था।

    वो नई बनती इमारत में काम करती दिहाड़ी मज़दूरिन से वाक़िफ़ थे

    ईंट ढोती दिहाड़ी मज़दूरन के सिर का ज़ख़्म उनकी कविताओं का विषय नहीं था।

    यों सब्रदार कविता ने

    इन मुखौटा कवियों पर कविता लिखी तो

    लानत लिखा एक रोज़।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आमिर हमज़ा
    • प्रकाशन : समालोचन
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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