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'लम्हा'

lamha

बबली गुज्जर

और अधिकबबली गुज्जर

    मैं जिस्म को ढो रही हूँ

    जिस्म दिल ढो रहा है

    दिल ढो रहा है एक टीस

    उसकी कोई याद आए, तो चाँद बहके

    कोई बात बताए, तो हवा महके

    पर उसकी शिकायत उसी से

    उसी का हुआ दिल, कैसे करे

    उसके जाने के बाद गहरी हुई थी जो,

    समंदर किनारों पर आई दरारें कैसे भरे

    मेरे पास कोई गीत होता, तो उसके लिए गाती

    कोई सपना होता तो कभी ख़ुदको जगाती

    जिन होंठों को वो गुलाब कहकर चूम लेता है

    वो जब इंकार की कहानी पढ़ने लगते हैं

    तो इस आँच से झुलस क्यों जाता है प्रेम

    दुख बाँचने की कोई लिपि गढ़ी गई होती

    तो पीड़ा के खारेपन से हो जाती इतनी खुरदरी

    कि छलनी कर देती सांत्वना के हाथों को

    दुख तब भी हो पाते आँखों से बरी

    प्रेम में आस की तितलियों का पीछा करते करते

    अपने अस्तित्व से इतना दूर जाती हैं लड़कियाँ

    कि उजाड़ बीहड़ों में आकर टूटा सम्मोहन

    धरती तभी तक हरी है दोस्त

    जब तक है लाल प्रेम का रंग

    जिस दिन औरत माथे पर सजा लेगी हरा सिंदूर

    और उतार देगी सर से लाल चुनर झीनी

    तुम प्रेम के प्रमाणपत्र में नहीं ला पाओगे कोई गुलाब

    दूर देश से लाकर देनी होगी कोई हरी प्रेम संजीवनी

    पुरुषत्व के अहम वाले आवरण तले दबकर

    स्त्री का प्रेम इतना धुँधला हो जाता है

    कि मुश्किल हो जाता है आगे बढ़ पाना

    नदियाँ हर रोज़ किनारों पर प्यास की कहानी

    सदियों से लिख-लिख मिटा रही हैं

    जिस महकते लम्हें को याद कर

    बिता देते हैं लोग बाक़ी की ज़िंदगी

    ...मेरे पास वो एक ख़ूबसूरत लम्हा नहीं है

    स्रोत :
    • रचनाकार : बबली गुज्जर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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