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लड़की के लिए बालकनी और खिड़की

ladki ke liye balcony aur khidki

अंशू कुमार

अंशू कुमार

लड़की के लिए बालकनी और खिड़की

अंशू कुमार

और अधिकअंशू कुमार

    लड़की को दरवाज़ों से ज़्यादा

    खिड़कियों और बालकनियों ने अपनाया है...!

    दरवाज़ों से एक भय और आशंका

    बनी रही कि कब, कौन,

    किस रूप में जाए,

    और कोई हमेशा के लिए

    आकर भी चला जाए और लौटे न...!

    क्योंकि इसी दरवाज़े से

    पुरुष प्रवास पर, नौकरी पर,

    खोज पर और शांति की तलाश में जाते रहे हैं...

    और उसी दरवाज़े के

    चौखट पर अपना

    दम तोड़ती रही औरतें

    उनके इंतज़ार में

    इसलिए लड़की—

    खिड़की और बालकनी की

    ओर से रही भयमुक्त

    जहाँ से उसने प्रेम को देखा

    सबसे क़रीब और उन्मुक्त

    उसकी स्मृतियों में

    ये जगहें रही सबसे सुंदर

    जहाँ प्रियतम ने खुलकर पकड़ा था उसका हाथ

    और साथ देखे थे दोनों ने

    छनकर आते चाँद और सूरज को

    हर बंद अँधेरे कमरे की

    उम्मीद रही—खिड़की और बालकनी

    जिसके उजाले ने अंत तक बचाए रखा

    लड़की को उसके मन की सीलन से

    ये दोनों जगहें जब तक आबाद रहीं

    तब तक लड़की तक लौटता रहा

    उसका बचपन, प्रेम और जीवन...!

    लड़की को दरवाज़ों से ज़्यादा

    खिड़कियों और बालकनियों ने अपनाया है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : अंशू कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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