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रातपाली मज़दूर के लिए लोरी

ratpali mazdur ke liye lori

अनाम कवि

अनाम कवि

रातपाली मज़दूर के लिए लोरी

अनाम कवि

तुम्हारी रातों ने

बदल ली हैं पाली दिन से

तुम्हारी नींद ने बदल ली हैं पाली, जागरण से

सूरज ने बदल ली है पाली चाँद से, सुबह की रोशनी और

आज़ादी का अर्थ

तुम्हारे लिए बेमानी हो चुका है

जिस वक़्त दुनिया ईश्वर चिल्लाती है

और चिड़ियाँ सूरज को

उस वक़्त तुम्हें थकान धकेल चुकी होती है

नींद की खाई में

उस वक़्त दुनिया का शोरगुल

सपनों से आता लगता है

तुम्हारे साथ ऊँघने लगती है साइकिल

तुम्हारे जागरण और ख़ून-पसीनों से

जो बढ़ रही है दौलत

उसका इस देश से नहीं रह गया वास्ता

तुम्हारे जीवन से नहीं रह गया है, उसका रिश्ता

इस वक़्त घास ने उतार फेंकी है

ओस की चादर

और पत्तियाँ खुल रही हैं आहिस्ता-आहिस्ता

दौड़ रहे हैं हॉकर लेकर अख़बार

जिनमें तुम्हारी कोई ख़बर नहीं है

मैदान झंडियों से सज चुके हैं

दौड़ रहे हैं वाहन

गहमागहमी है सड़कों पर

पधार रहे हैं महामहिम

हमेशा की तरह

चंद नौकरशाह के लिखे संदेश, घोषणाएँ और वादे

दोहराए जाने वाले हैं

इस वक़्त तू सो जा

सो जा, कि जा चुका है सड़क का नल

और धुएँ ने अपनी गिरफ़्त में ले लिया है तेरा आसमान

जा चुकी है रात, समेटकर अपने रहस्य और वैभव

डूब चुका है ध्रुवतारा बर्फ़ की निस्तब्ध उदासी में

सो जा कि शाम घिरने पर

काली ज़ंजीर की तरह लेने आएगी भोंपू की आवाज़

सो जा, कि माँ की तरह

सदा जागता है कोई

तेरे सोने को देखता हुआ

तेरी तरह अभी कई लोग हैं

रोटी का पीछा करते

डूबे, ग़ुलामी के अभिशाप में

सो जा कि उनका सूरज अभी निकला नहीं

यह कोई और सूरज है काम पर ले जाने वाला

अन्य लोगों के उत्सवों में धूप भरने वाला

सो जा कि रात तुझे लेने आएगी

अपने रहस्यों में शामिल करने

सो जा कि रातपाली बदल कर

रहा है सूरज

तेरे हाथों की आग के संकेत

और उदासी के मर्म

खुल रहे हैं शब्दों में

इधर, बेतरह बेचैन हूँ इस वक़्त

सोचता, तुम्हारी नींद के बारे में।

स्रोत :
  • पुस्तक : एक अनाम कवि की कविताएँ (पृष्ठ 152)
  • संपादक : दूधनाथ सिंह
  • रचनाकार : अनाम कवि
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2016

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