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कुत्ता

kutta

उदयन वाजपेयी

और अधिकउदयन वाजपेयी

    कुत्ता होने वाली मृत्यु पर रोता है। देर रात किसी गली से निकल कर किसी घर के

    दरवाज़े पर ठिठकती मृत्यु को देखकर पहले वह भौंकता है। फिर यह पाकर कि वह

    उसकी ओर ध्यान दिए बिना घर के भीतर जा रही है, वह रोना शुरू करता है।

    दरअसल उसका भौंकना ही पिघलकर रोने में तब्दील हो जाता है। उसका भौंकना

    उसका रोना ही है, झटकों में बाहर आता हुआ। कुत्ता रोए या भौंके, वह किसी

    आसन्न मृत्यु की ख़बर ही पहुँचाता है। दूसरे शब्दों में, कुत्ता जाने कैसे यह जानता

    है कि जिस शहर या गली में वह इतनी शान से चल रहा है, वह महज़ एक ख़्वाब

    है जिसे देखने वाला बस जागने को है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पागल गणितज्ञ की कविताएँ (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : उदयन वाजपेयी
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2005

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