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कुछ अजब दृश्य इधर मैंने देखे हैं

kuch ajab drishya idhar mainne dekhe hain

रुस्तम

रुस्तम

कुछ अजब दृश्य इधर मैंने देखे हैं

रुस्तम

और अधिकरुस्तम

    कुछ अजब दृश्य इधर मैंने देखे हैं।

    एक दर्पण उड़ रहा था तूफ़ान में।

    एक द्वार बह रहा था बाढ़ में।

    एक पेड़ घरघराकर गिर पड़ा।

    एक पक्षी उड़ नहीं पा रहा था।

    मैं जहाँ भी गया वहाँ घायल कोई जानवर कराह रहा था—भरे नहीं जा सकते थे उसके ज़ख़्म, वह इतना आहत था।

    मैं रब हूँ, मैं रब हूँ, विक्षिप्त एक व्यक्ति चिल्ला रहा था, मैंने ही बनाया था यह नर्क।

    पूरी पृथ्वी पर कहीं लाल, कहीं हरा ख़ून बिखरा पड़ा था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रुस्तम
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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