किसी और दिन लिखूँगा तेरी बात
kisi aur din likhunga teri baat
हरप्रसाद परिछा पटनायक
Haraprasad Parichha Pattanaik
किसी और दिन लिखूँगा तेरी बात
kisi aur din likhunga teri baat
Haraprasad Parichha Pattanaik
हरप्रसाद परिछा पटनायक
और अधिकहरप्रसाद परिछा पटनायक
देखो, मुझे नहीं पता था कि तुम यों पहुँच जाओगी अचानक
अपरिचित दुःख-सी सात ही दिन में।
चक्कर काटने लगी धूप आकाश में,
मेरी देह भरी पसीने में,
पाँव और माथे पर
कई अर्थ की धूल,
आँखों में प्रतिबिम्बित
पिछली रात का भयावना सपना, होंठ पर खिली हँसी
मन पवन में झड़ में ध्वस्त क्लांत पृथ्वी की कथा।
तुमने कहा था उस दिन आओगी
जब तुम्हारे माथे पर लाख तारों का उजाला
बाक़ी सारी पृथ्वी को आलोकित करता होगा,
जब तुम्हारी हँसी में हवा डर जाएगी
छुप जाएगा अंतरिक्ष उस पार,
जब तुम्हारे इंगित में रात होगी दिन,
कोटि-कोटि लोगों की नींद टूटेगी सूरज की किरणों में,
जब हज़ार दुःख हम गँवा देंगे
हज़ार पलकों में और हँसते-हँसते देखेंगे
तुम्हें देखेंगे तुम्हारे क्षणिक रूपांतर में।
कल-सा लगता, इतने दिन गए
पर्वत की चोटी पर मंदिर बेढ़ा में मरते
तीन शिशुओं की रुलाई न सुनाई दी हमें
सुनाई नहीं दी चाँदनी रात की सहायता में
नदी कछार में योनि विदारित की आख़री चीख़,
प्रिय वन्या आई, धो गई कुछ पाप,
आदिवासी चले और घने वन में,
भूख में कीड़ों-से कुलबुला उठे कुछ प्राण,
इन सब में किन्तु तुम्हारा आना नहीं हुआ।।
अब आई हो
आज बहुत व्यस्त हूँ,
किसी और दिन आना, तब लिखूँगा तेरी बात।
ये सुबह बीत गई यों ही टहलने में
पवन संग बतियाने में,
आम की डाल पर कोयल की लंबी तान रुलाई सुनने में,
पेड़ों की भूख अनुभव करने में।
अभी छोटा बेटा ज़िद कर रहा,
उसके लिए एरोप्लेन, सलेट, बंदूक़
और धनु-तीर ख़रीदे जाएँगे।
बड़ा अंग्रेजी पढ़ेगा,
आज चार घंटे क्लास है, ख़त लिखना है,
तबादले की आशंका में पकड़ा-धकड़ी,
मकान की प्लान हेतु बीडीए में ज़ेब गर्म करानी है।
शाम को प्रेस जाना, रात में बाहर खाना है।
इस वक़्त तुम तो
दिख रही कलंकित इतिहास का कंकाल,
आँख है, आँख नहीं,
तेरी आत्मा कहाँ है भगवान जाने...
किसी और दिन आना तब लिखूँगा तेरी बात
आज बहुत व्यस्त हूँ।
तुम इतने दिन रह गई कि
बरगद की झूल में उग आई डाल,
बरसा देखी, बसंत देखा तुमने
कई दिन हँसी, सबको सपने दिखाए;
घर-घर में सबने बात की—
कहा—
सुनती हो, वो इतना पराक्रमी
हार नहीं लिखी उसके भाग्य में...।
तुम अब चले जाओगे अतः व्यस्त हो कह रहे...
लिख दो कुछ मेरी बात इतिहास के लिए अपनी क़लम से...
आज बहुत व्यस्त हूँ,
किसी और दिन आना,
उस दिन तुम्हारी बात लिखूँगा।
- पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 266)
- संपादक : शंकरलाल पुरोहित
- रचनाकार : हरप्रसाद परिछा पटनायक
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2009
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