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किरन-धेनुएँ

kiran dhenuen

श्रीनरेश मेहता

श्रीनरेश मेहता

किरन-धेनुएँ

श्रीनरेश मेहता

और अधिकश्रीनरेश मेहता

    उदयाचल से किरन-धेनुएँ।

    हाँक ला रहा वह प्रभात का ग्वाला।

    पूँछ उठाए चली रही

    क्षितिज जंगलों से टोली

    दिखा रहे पथ इस भूमा का

    सारस, सुना-सुना बोली

    गिरता जाता फेन मुखों से

    नभ में बादल बन तिरता

    किरन-धेनुओं का समूह यह

    आया अंधकार चरता,

    नभ की आम्रछाँह में बैठा बजा रहा वंशी रखवाला।

    ग्वालिन-सी ले दूब मधुर

    वसुधा हँस-हँस कर गले मिली

    चमका अपने स्वर्ण सींग वे

    अब शैलों से उतर चलीं।

    बरस रहा आलोक-दूध है

    खेतों-खलिहानों में

    जीवन की नव किरन फूटती

    मकई औ’ धानों में

    सरिताओं में सोम दुह रहा वह अहीर मतवाला।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रचना संचयन (पृष्ठ 49)
    • संपादक : प्रभाकर श्रोत्रिय
    • रचनाकार : श्रीनरेश मेहता
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2015

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