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ख़ूबसूरत औरतें

khubsurat aurten

भावना झा

भावना झा

ख़ूबसूरत औरतें

भावना झा

और अधिकभावना झा

    बहुत ख़ूबसूरत लगतीं हैं

    वो औरतें

    जिनके लिए

    लिए कोई उपमाएँ

    नहीं गढ़ी गईं!

    काली देह से आती पसीने

    की ख़ुशबू ने किसी को

    अपनी ओर आकर्षित

    नहीं किया!

    आढ़े-तिरछे दाँतों में

    दबी मुस्कान

    की तुलना नहीं होती

    मोनालिसा से!

    फटी बिवाईयो वाले पैरों में

    छनकती पायल पर

    गीत नहीं सुने

    थे उसने!

    ना ही बर्बाद हुआ कोई

    उनकी प्रेम की पराकाष्ठा

    को पाने के लिए!

    पर जब उत्सर्ग कर देतीं

    सारे खोखलेपन को

    लगातीं बेबाकी से ठहाके

    हर दुःख को पछाड़तीं

    अदम्य साहस से पकड़

    ज़िंदगी का हाथ

    चल देतीं समेटकर

    सारी विडंबनाओं का बाज़ार!

    सच! बहुत ख़ूबसूरत लगतीं

    वो औरतें!

    चट्टान की तरह सख़्त पर

    पिघलता बर्फ़ का समंदर

    अंतर में

    मोल भाव जाँच-परख

    में थोड़ी कच्ची

    ठोक बजाकर नहीं

    देखती किसी रिश्ते को,

    जोड़ लेतीं बहनापा

    चलते-चलते!

    सख़्त खुरदुरे हाथ

    अभ्यस्त हैं और

    संकल्पित भी

    तराशने में हर बेढंगी

    कल्पना को!

    पतझड़ से पहले

    बचा लेतीं हैं कुछ हरापन

    अपने लिए

    वसंत आने का

    का उत्सव मनातीं

    वो औरतें बेहद

    ख़ूबसूरत होतीं!

    स्रोत :
    • रचनाकार : भावना झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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