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खिनुवा

khinuwa

खिनुवा का पेड़ हूँ मैं

तुम कहाँ पहचानोगे मुझे

मैं नहीं दे सकता हूँ तुम्हें

सरस-स्वादिष्ट फल

नहीं बन सकता हूँ तुम्हारी हवेली की

दरवाज़े-खिड़कियों की चौखट

मेरे पास नहीं हैं

चित्ताकर्षक और सुगंधित फूल

जिन्हें सज़ा सको तुम अपने फूलदानों में

मैं कोई पवित्र पेड़ हूँ

तुम्हारे व्यवहार पर

मुझे आश्चर्य है और अफ़सोस

मैं अच्छी तरह पहचानता हूँ तुम्हें

तपती दुपहरी बीच

बीहड़ में भटकते को

मैं दे सकता हूँ गझिन छाया

ठंड में ठिठुरते की रात को

गरमा सकता हूँ

लौकी-ककड़ी-तोरई की बेलों के लिए

बन सकता हूँ माकूल ठाड़रा

काटकर फेंक दो मुझे

तमाम उपेक्षाओं के बावजूद

ज़रा-सी मिट्टी और नमी पाकर

फिर से खड़ा हो सकता हूँ

फैला सकता हूँ अपनी भुजाएँ

ख़ुशी है मुझे

शामिल हो सकता हूँ

पक्षियों के मुक्ति समूहगान में

दूर आसमान की उड़ान में

तुम नहीं पहचानोगे मुझे

मैं खिनुवा का पेड़ हूँ।

स्रोत :
  • रचनाकार : महेश चंद्र पुनेठा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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