खींचती है मुझे अपनी ओर कू-कू की आवाज़-चार
khinchti hai mujhe apni or ku ku ki avaz chaar
लक्ष्मीकांत मुकुल
Laxmikant Mukul
खींचती है मुझे अपनी ओर कू-कू की आवाज़-चार
khinchti hai mujhe apni or ku ku ki avaz chaar
Laxmikant Mukul
लक्ष्मीकांत मुकुल
और अधिकलक्ष्मीकांत मुकुल
उसकी कू-कू को सुनकर
तड़प उठता हूँ तुम्हारे पास जाने की चाहत में
सुनने को तुम्हारी मीठी बातें
खनकती हँसी, थिरकते लब
तुम्हारी पनीली आँखें
छू लेने को मचलता हूँ
तुम्हारी करमी-पातों-सी नरम उंगलियाँ
जैसे सूंघती हुई कोयल
स्पर्श करती है अपनी चोंच से
आम के गुच्छे में लगे टिकोरे
गेंदे फूलों पर मंडराते
पराग-कणों की ललक में भौंरे
पके पपीते को ठोरियाने के लिए सुग्गें!
- रचनाकार : लक्ष्मीकांत मुकुल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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