खेवली तक
नहीं आती है कोई सड़क
खेवली से
लड़खड़ाती पगडंडियाँ जाती हैं
और फीतों की तरह खुलती पहिया-लीकें
साइकिलों और बैलगाड़ियों और इक्का-दुक्का स्कूटर-मोटरसाइकिलों की
शहर तक
बरास्ते राजपथ
दुबली पहिया-लीकें ग्राम-धूल मिलाती जातीं दूर तक
पक्की सड़क के कोलतार में
ट्रकों और बसों और कारों-जीपों के टायरों से बचतीं पिचतीं
धूलधूसर ही नहीं, कभी-कभी लहूलुहान पहुँचतीं
शहर के दुआरे जहाँ लगे हैं अदृश्य लौह-कपाट
जादुई ढंग से जो कमल की पँखुड़ियों की तरह बंद होने लगते हैं अनायास
वापस खेवली की दिशा में, रात के पसार में, खो जाने के लिए उन्हें जब
खदेड़ने लगता है सूर्यास्त
जबकि मुख्यालय से
उतनी ही दूर है खेवली जितना मुँह से निवाला
वह मुँह, लपलपाती जीभ वाले एक अजदहे का मुँह
जो खुलकर खींचता है अपना शिकार
और खिंचे आने के सिवा
कोई रास्ता नहीं होता
सड़क हो चाहे नहीं
खिंचे आते हैं मुँहबंद बोरों से भरे अनाज
और दुधगर बाल्टे
और कामगार लोग
साक्ष्य देने को बच रहते हैं मानव-कंकाल
जो किसी गिनती में नहीं
उनकी संख्या चाहे जितनी हो
क्योंकि खेवली में नहीं है किसी एम. पी. का समधियाना
या किसी मिनिस्टर की ससुराल
भतसार की प्राइमरी पाठशाला में पढ़े बच्चे नहीं बनते हैं आइएएस-पीसीएस
बने तो, प्राय: वे छोटे-मोटे कर्मचारी बनते हैं
मास्टर-हेडमास्टर, स्टेनो-टाइपिस्ट, बाबू-चपरासी, ड्राइवर-खलासी
या फिर किसान
और कोई-कोई कवि भी
तुमने धूमिल का नाम सुना है?
‘संसद से सड़क तक’ का कवि
बोल्डरों की तरह लुढ़कता-फेंकता था वह अपने शब्द
कुछ बदनीयत दिलों में गड्ढे हो जाते थे
अधिकतर भोरे दिमागों गड़हियाँ पट जाती थीं
उसकी खेवली तक
कोई सड़क नहीं आती
बरसात शुरू होते ही दुर्गम द्वीप बनी खेवली तक
जब पहुँची नहीं कोई पंचवर्षीय योजना कभी
तो घुटनों तक ऊँचे रबर-बूट पहने
भला क्यों आएँगी
जवाहर रोज़गार योजना और इंदिरा आवास योजना सरीखी महीयसी योजनाएँ
उसके सिवान तक कभी
आती हैं केवल रेडियो-केद्रों की ध्वनि-तरंगें
और टेलिविजन-परदों के लिए उपग्रह से प्रक्षेपित चित्रावलियाँ
आकाश-मार्ग से
अनवरत
बाट जोहते रहें बाट की
कन्हैया पाँड़े और असलम मियाँ
विपत महतो और संपत बिंद
अरार की तरह धसकती रहेगी
रह-रह
उनके हृदय में
पक्की सड़क की कच्ची उम्मीद
भारत-भाग्य विधाता!
संसद-सौध की सर्वोच्च ऊँचाई से
क्या खेवली दिखती है कहीं
भारत के मानचित्र में?
खेवली!—जिसकी माटी में
उपजते हें
कवि और किसान
कि भारत के प्राण जहाँ बसते हैं!
- पुस्तक : संशयात्मा (पृष्ठ 26)
- रचनाकार : ज्ञानेंद्रपति
- प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
- संस्करण : 2016
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