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ख़ास बात नहीं

khas baat nahin

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

प्रतिभा शतपथी

प्रतिभा शतपथी

ख़ास बात नहीं

प्रतिभा शतपथी

और अधिकप्रतिभा शतपथी

    जो भी कुछ कहा है

    भूल जाओ उसे

    ऐसी कोई ख़ास बात तो

    कही नहीं मैंने

    मान लो चाँदनी रात में अंधाधुंध उड़ रही चिड़िया की

    बावली चहचहाहट से कोहरा पोंछ लाई,

    रुआँसी हवा को सिर टिकाने के लिए

    बढ़ा दिया अपना कंधा और अपनी बाँह

    या फिर लीक से ज़रा-सा हटकर

    बाहर निकले पाँवों में

    महावर की लकीर खींच दी या

    उड़ेल दिए अँजुरी भर फूल

    तो क्या नई बात स्वीकृत हो गई?

    कोई नई बात?

    धुआँधार बारिश में भीगकर

    चबूतरे पर चढ़ आए बटोही के लिए

    खोल दिया तभी बाहर का दरवाज़ा

    तारों की तरह जलते-बुझते

    शब्दों के बीच

    ‘टिक्-टैक्-टो’ खेल के निशान लगा दिए

    तो ऐसा क्या गढ़ डाला मैंने सचमुच?

    बिजली के क्षणिक सुंदर नृत्य से

    जब चमक उठा, बज उठा ब्रह्मांड

    जुगनुओं को अँजुरी में भरा है मैंने—

    रोकर गिरे हाथ-पैर

    धुएँ और आग की ऋतु-पीठ पर

    आँसू पोंछे हैं शायद

    लहूलुहान वनस्पति को

    सहलाया है अपने

    आतुर हाथों से

    क्या इसका मतलब

    जी जाओ का आदेश दिया है किसी को

    भला फली है कभी कोई शुभकामना मेरी?

    तभी तो कहती हूँ

    भूल जाओ

    कुछ भी नहीं यह सब

    व्याकुल-अधीर हो

    कभी कुछ कह भी गई होऊँ तो

    सच-झूठ मत छाँटो उसमें।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधा-आधा नक्षत्र (पृष्ठ 53)
    • रचनाकार : प्रतिभा शतपथी
    • प्रकाशन : मेघा बुक्स

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