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खंडित कविता की रात्रि

khanDit kawita ki ratri

पूनम अरोड़ा

पूनम अरोड़ा

खंडित कविता की रात्रि

पूनम अरोड़ा

और अधिकपूनम अरोड़ा

    किसी दिन कोई खंडित कविता की रात्रि

    अपनी अपेक्षाओं पर से मुझे ख़ारिज कर देगी

    उस दिन

    मैं फिर बन जाऊँगी एक तितली

    बैठी रहूँगी उस वृक्ष पर

    जिसकी शाखें तुम्हारी खिड़की तक

    एक पुल हैं शरारती गिलहरियों का

    फिर पार करूँगी मैं

    अद्वैत की सीमारेखा!

    स्रोत :
    • रचनाकार : पूनम अरोड़ा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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