खंडहर
khanDhar
एक
नष्ट हो गए हिस्से को
अदृश्य लादे रहते हैं
अपने कंधे पर
खंडहर
अपने अभाव में
भाववाचक बन जाते हैं
भाववाचक नष्ट नहीं होते।
दो
मुकम्मल कविताओं की झड़ गई
ऊबड़-खाबड़ पंक्तियाँ हैं
खंडहर याद दिलाते हैं
कि दीमकों के हर हमले के बाद भी
थोड़ा बच गए वे या बचा लिए गए
खंडहर क्षरण के विरुद्ध
सुंदर चीज़ों की जूझ और ज़िद के निशान हैं।
तीन
याद दिलाते हैं
कि थे वे पूरे कभी
उससे ज़्यादा कि नष्ट हो गए
अधूरेपन के दुख में औंधे पड़े खंडहर
अधूरे रह गए प्यार की तरह
कशिशदार मीठे और प्यारे लगते हैं
चार
सच तो यह है
कहानी बनने से बहुत पहले
हर आदमी तब्दील हो जाता है खंडहर में
उजाड़ और अकेला
झड़ चुके दृश्यों के अदृश्य में खोया
सच तो यह है हर आदमी
नहीं होने पर भी
बचा होता है आस-पास बिखरे टुकड़ों में
जो उससे चिटक जाते हैं
जब वह धूप-हवा-अन्न पानी से
जूझ रहा होता है
कहानियों में बच गया यह आदमी
हमें बहुत पसंद होता है
पाँच
कुछ खंडहरों के चेहरे झुलसे होते हैं
उनमें से मनुष्य की घृणा की
गहरी काली इबारतें झड़ती रहती हैं हरदम
और गड़ती रहती हैं आँखों में
आज तलक सुलग रहे है कुछ खंडहर
उठता है धुँआ उनके अंतस्थल से
ये खंडहर फ़क़ीर हैं
जिनकी सीख
गाई जाती है उदास
और फिर भुला दी जाती है
छह
काल के समुद्र में नहाए
हवा-धूप-पानी के प्यार और विरह से
बिगड़े-सँवरे खंडहर
बड़े कशिशदार होते हैं
उदास विधुरत्व उनका
भीतर सहला देता है
किसी के अकेलेपन को
बहा देता है मीठा दर्द सा
यहाँ पहुँचकर
अक्सर एक मन दार्शनिक हो जाता है
अक्सर एक आदमी मुस्कुराता है
जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझ गया हो जैसे
- रचनाकार : ऋतेश कुमार
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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