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कविताएँ चंद नंबरों की मोहताज हैं

kawitayen chand nambron ki mohtaj hain

शुभम श्री

शुभम श्री

कविताएँ चंद नंबरों की मोहताज हैं

शुभम श्री

और अधिकशुभम श्री

    भावुक होना शर्म की बात है आजकल और कविताओं को दिल से पढ़ना बेवक़ूफ़ी

    शायद हमारा बचपना है या नादानी

    कि साहित्य हमें ज़िंदगी लगता है और लिखे हुए शब्द साँस

    कितना बड़ा मज़ाक़ है

    कि परीक्षाओं की तमाम औपचारिकताओं के बावजूद

    हमे साहित्य साहित्य ही लगता है, प्रश्नपत्र नहीं

    ख़ूबसूरती का हमारे आस-पास बुना ये यूटोपिया टूटता भी तो नहीं!

    हमे क्यों समझ नहीं आता कि कोई ख़ूबसूरती नहीं है उन कविताओं में

    जो हमने पढ़ी थीं बेहद संजीदा होकर

    कई दिनों तक पागलपन छाया रहा था

    अनगिनत बहसें हुई थीं

    सब झूठ था

    हमारा प्यार... हमारा ग़ुस्सा... हमारे वो दोस्त, उनके शब्द...

    क्योंकि तीन घंटे तक बैठ कर नीरस शब्दों में देना पड़ेगा मुझे बयान

    अजनबियों की तरह हुलिया बताना पड़ेगा उन तीस पन्नों में

    मेरे इतने पास के लोगों का

    नहीं कह सकती

    कि नागार्जुन ने जब लिखा शेफ़ालिका के फूलों का झरना

    तो झरा था आँख से एक बूँद आँसू

    नहीं बता सकती कि धूमिल से कितना प्यार है

    कितना ग़ुस्सा है मुझे भी रघुवीर सहाय की तरह

    नागार्जुन-धूमिल-सर्वेश्वर-रघुवीर

    सिर्फ़ आठ नंबर के सवाल हैं!

    कैसी मजबूरी है कि उनकी बेहिसाब आत्मीयता का अंतिम लक्ष्य

    छह नंबर पाने की कोशिश है!

    चाहते हुए भी करना पड़ेगा ऐसा

    क्योंकि शब्दों से प्यार करना मुझे सुकून देगा और चंद पन्नों के ये बयान 'करियर'

    स्रोत :
    • रचनाकार : शुभम श्री
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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