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कविता

kawita

सत्येंद्र कुमार

और अधिकसत्येंद्र कुमार

    मेरी कविता

    तुम्हारे दुखों तक नहीं पहुँची

    जबकि दो शब्दों के बीच की

    ख़ाली जगह पर

    तुम्हारे आँसू अटके होने चाहिए थे

    उन पंक्तियों को छूने पर

    उसके पोर भीगे होने चाहिए थे

    पंक्तियों के बीच की जगह में

    बैठ कोई मज़दूरन

    कलेवा ले

    अपने पति का इंतज़ार करती

    दिखनी चाहिए थी।

    मैं क्या करूँ

    इन कविताओं का?

    जिसमें किसी किसान का

    चेहरा नहीं दिखता हो

    उनके बैलों की साँसें

    सुनाई पड़ती हों

    माँ के बुढ़ापे की लाठी की ठक-ठक

    कहीं गुम हो गई हो?

    मैं क्या करूँ

    इन कविताओं का?

    जो, भूखे बच्चों की

    रोटियाँ छीनने वालों की

    जमात में खड़ी हो,

    जो देश बेचनेवाले राष्ट्राध्यक्षों के

    भोज में शामिल हो,

    जो,

    किसी तानाशाह की सनक

    की रखवाली करती हो?

    मैं क्या करूँ

    इन कविताओं का?

    इन कविताओं की रखवाली करने से पहले

    मुझे पिता की उचाट रातों में

    नींद की रखवाली करनी है

    लड़ी जाने वाली लड़ाइयों के औज़ारों को

    चमकाने के लिए

    खुरदरे पत्थर बनना है

    शब्दों की छेड़छाड़ से पहले

    शब्दों को बचाना है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हे गार्गी (पृष्ठ 50)
    • रचनाकार : सत्येंद्र कुमार
    • प्रकाशन : रश्मि प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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