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कविता मेरी कमाई है

kawita meri kamai hai

आदित्य रहबर

आदित्य रहबर

कविता मेरी कमाई है

आदित्य रहबर

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    कुछ कविताएँ लिखनी हैं

    तुम्हारे लिए

    हाँ, तुम्हारे लिए

    वे सारे पल

    यादें जो स्मृतियों के हवाले हैं

    दर्ज होंगे उनमें

    हाँ, लेकिन नहीं होगा

    उनमें कहीं भी तुम्हारा ज़िक्र

    हमारा भी

    जैसे बारिशों में नहीं होता कहीं भी

    बादलों का ज़िक्र

    नहीं होता प्रेम में कहीं

    प्रेमियों का ज़िक्र

    प्रेम बादलों की तरह है

    जो बरस जाने के बाद

    और ज़्यादा नमीयुक्त हो जाता है

    घास को देखते हुए भी तुम्हारी याद आती है

    उसपर अटकी बारिश की बूँदों को देखकर

    तुम्हारा पहला स्पर्श मन में कौंध जाता है

    तुम्हारा स्पर्श

    मानो पुरबा हवा की हरकतें हों

    ठीक माँ के स्पर्श की अनुभूतियों की तरह

    तुम्हें देखते हुए हर बार

    मुझे मेरी माँ की याद आती है

    हाँ, तुम्हारे माथे की बिंदी

    ठीक उसी जगह पर होती है

    जहाँ माँ लगाती है

    मैं लिखूँगा एक दिन अपनी माँ पर कविताएँ

    जिनमें मैं नहीं होऊँगा

    माँ नहीं होगी

    सिर्फ़ कविताएँ होंगी

    कविताएँ बहुत सारी माँओं का प्रतिबिंब हैं

    मैं जब भी ख़ुद को अकेला महसूस करता हूँ

    कविताएँ लिखता हूँ

    तब मैं अकेला नहीं होता

    एक पूरी दुनिया होती है मेरे साथ

    मैं अपनी माँ से दूर कभी नहीं रहा

    ना तुम रही मुझसे दूर

    मेरे सारे सृजन

    कभी मेरे नहीं रहे

    मैं भी मेरा नहीं रहा

    हाँ, यादें रहीं

    अंततः उन्हीं यादों से फूटी कविताएँ

    उन्हीं कविताओं से हुआ मेरा जन्म

    मैं अपनी कविताओं का ऋणी हूँ

    कविता मेरी कमाई है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आदित्य रहबर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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