कविता के लिए : एकांत प्रार्थना
kawita ke liye ha ekant pararthna
हीरेन भट्टाचार्य
Hiren Bhattacharya
कविता के लिए : एकांत प्रार्थना
kawita ke liye ha ekant pararthna
Hiren Bhattacharya
हीरेन भट्टाचार्य
और अधिकहीरेन भट्टाचार्य
कठोरता से ठोकर खाकर लौट आती है कवि की आवाज़,
प्रतिद्वंद्वीविहीन
क़लम के सामने काँपती है प्रतिश्रुत कविता, कवि का अस्तित्व
स्नायुभार से पीड़ित अंतहीन कवि का नातिउच्च स्वर में शोक का श्लोक,
शिल्प की स्वाधीनता...
मुझे यह कविता ख़त्म करने दो इच्छानुसार
रक्त की वाणी विवस्त्र देह के अनचाहेपन में छटपटा कर मरती है
हाथ में भविष्य की अद्भुत पताका
मुझे अभय-दान दो परिचित शब्दों की जड़ता तोड़ हथौड़े से
चूर-चूर करने की, या फिर रक्तहीनता से मृतप्राय निष्फल यथार्थ को
टुकड़े-टुकड़े करती दुर्धर्ष तलवार की विलक्षण तेजस्विता।
- पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 29)
- संपादक : गिरधर राठी
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक पापोरी गोस्वामी और अरुण कमल
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 1994
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