शीर्षक शिवपूजन सहाय की कहानी 'कहानी का प्लॉट' के शीर्षक से अनुप्रेरित
बाबा साहेब से आभा पाकर
मेरा धूसर चेहरा ऐसे चमकता है
जैसे मोची के सधे हाथों पॉलिश पा कोई जूता!
उधर वह शतरंजबाज़
धर्म की ओट ले
बाज़दफ़ा ऐसे लगाता है शह
जैसे बाँध रहा हो मात और घात का सधा पलीता!
मैं ऐसे रीतना चाहता हूँ इधर
जैसे रीतता है दिवस बीतता है बरस माह
तयशुदा बारम्बारता में अपनी लौट आने को!
चाहता हूँ मैं
फिर फिर खोऊँ ऐसे अपने अवगुण
जैसे खोता है झट वर्तमान बन समय बीता
अपने अणु परमाणु जीवाश्म
कभी न लौट कर आने को
और नया सकारात्मक सतत पाता रहूँ अविनाशी!
चाहना है मेरी यह भी कि
घातक क्रोध का मुझमें उतना भर ज़रूर रहे संभार,
जितना एक सद्यःजनमा शिशु का चलता है जगना
ताकि आपद काल में वह आ सके काम
और, संचित रहे मुझमें वाज़िब गुस्से का आतप उस दीर्घ डिग्री का
जितना नवजनमा बच्चे का चलता है सोना
कवि, अब लो यह कविता का प्लॉट
और हो सके तो उठा लो इसपर
उस शिखर कहानी
'कहानी का प्लॉट' सी कोई कविता!
- रचनाकार : मुसाफ़िर बैठा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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