कवि मानबहादुर सिंह की हत्या की ख़बर सुनकर
kawi manabhadur sinh ki hattya ki khabar sunkar
ज्ञानेंद्रपति
Gyanendrapati
कवि मानबहादुर सिंह की हत्या की ख़बर सुनकर
kawi manabhadur sinh ki hattya ki khabar sunkar
Gyanendrapati
ज्ञानेंद्रपति
और अधिकज्ञानेंद्रपति
एक
सान्ध्य तारक-भर रोशनी में
हम बैठे रहे थे ग़मगीन
बलछीन
डूब गया था हमारा सूरज
और हमारा ही आकाश
रक्ताक्त था
दो
बीड़ी बुझने के क़रीब तो नहीं थी उसकी
ज़िंदगी की बीड़ी—
मेरे कवि-दोस्त की—
दम बटोरती दम लगाती कविता के होठों से
जिसे झपट छीनकर हठात् बलात्
रगड़कर, क्रूरता से
बुझा दिया गया पागल हाथों
और फटी आँखों ताकती रही मनुष्यता
जिसकी आँख का पानी मर गया है ताकते-ताकते
- पुस्तक : संशयात्मा (पृष्ठ 188)
- रचनाकार : ज्ञानेंद्रपति
- प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
- संस्करण : 2016
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