एक
हम कस्तूरी हिरनों के वंशधर हैं
जो अपने सुगंध के सूत्रों से
दसों दिशाओं को एक में सी देते हैं
और आप लोग?
उन्हीं सुगंध के गुणों की तुलना
स्वर्ग के फूलों से करते हुए
परस्पर एक दूसरे से
रात-दिन मतभेद में मग्न रहते हैं।
दो
आप लोग वाग्देवी सरस्वती के नेत्रों से छलकने वाले
एक कटाक्ष की बूँद की याचना में
हाथ बाँधे प्यासे खड़े रहते हैं
और हम धन्य लोग?
उसके अमृत जैसे दुग्ध से परितृप्त होकर
उसकी गोद में रहकर
विभिन्न प्रकार की आनंद केलियाँ करते रहते हैं।
तीन
सरस्वती का निवास स्थान है हमारी जिह्वा
उस पर जब कवितामृत से पगी कुछ उक्तियाँ आती हैं
तो सौंदर्यशास्त्री उसे कविसमुदाय में स्वीकृत
काव्यशास्त्र की रूढ़ियों में
चिरकाल तक के लिए
सम्मिलित कर लेते हैं।
चार
वाग्देवी सरस्वती
हमारे मुखों से वैसे ही लड़खड़ाती हुई निकलती है
जैसे पिता के गोद से पुत्री के पैर
डगमगाते हुए बाहर आते हैं
तब उसके सौंदर्य से उल्लसित बुद्धिवाले छंद शास्त्र के ज्ञाता
उस चरण की विषमता को
अपने शास्त्र के विषमचरण छंदों में
पहला स्थान देते हैं।
पाँच
छोटी-सी बालिका की तरह हमारी वाणी
जब किलकिलाहट से भरे पाँच-छह ऐसे अद्भुत शब्दों का उच्चारण करती है
जो पुराने विद्वानों को भी नए नए लगते हैं
तब उनको सही ठहराने के लिए मानो
महावैयाकरण पाणिनि
हाथ में कुश लेकर,
पूर्वाभिमुख होकर
फिर नए सूत्रों को रचने के लिए तैयार होने लगते हैं
छह
नित नूतन संसार को रचने में कुशल हम
सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के वारिस हैं
सरस्वती के कोमल प्रेम पूर्ण कटाक्षों से
हमारी आँखें जी उठी हैं
हम हैं रसिकों के आराध्य
धनिकों की ईर्ष्या के पात्र
बाह्य और आंतर जगत् से उल्लसित बुद्धि वाले
हम हैं कवि।
- रचनाकार : बलराम शुक्ल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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