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कवि और कविता

kawi aur kawita

अनुवाद : रति सक्सेना

बालमणि अम्मा

बालमणि अम्मा

कवि और कविता

बालमणि अम्मा

और अधिकबालमणि अम्मा

    बार-बार मेरे विचार पहुँचते तेरे पास

    बड़े प्यार से, मेरी कविता!

    बिजली-सी चमकने वाली अनुभूतियाँ

    नित्यता पाती हैं तुझमें पहुँचकर

    आज भी तो मेरे सूखे आँसुओं से बना

    हीरक मुकुट धारण किया तुमने

    आज भी मेरे जीवन के वासंती

    फूलों से सजा रहीं तुम अपने को

    आज भी तुम धारण करती हो, मेरी

    अर्चनापीठिका पर रखी धूपबाती की गंध को

    तेरा तन आवृत है मेरे मन में

    आज भी लहराने वाली धवल चाँदनी से

    यह पंचेन्द्रिय भूत मिट्टी में मिल जाएगा

    फिर भी तुममें रहेगा मेरे जीवन का सार तत्त्व

    वर्षों बीतने पर भी लोग क्या आस्वादन करेंगे

    इस सुंदर जग ने जगाई जो मुझमें

    उन भावनाओं के उद्वेगों को—

    प्यार से भरे लोगों और जलते चूल्हों वाले

    अंतर्गृह के वातावरण को—

    काली घटाओं से, चमकती धूप से कोमल ओसबूँदों से, मल्लिका फूलों से

    दिनोंदिन सुंदर स्वर्ग बनाने वाले

    तेरी कल्पना में सृजन के आनंद को—

    बार-बार का प्रयत्न अर्पित है जिसमें

    मेरी चेतना में स्थित चरितार्थ को—

    या फिर, धरती पर सुनहरे मेघ स्वप्न

    देखने वाले अनेक लोगों में—

    लगातार बढ़ती व्यक्तिवादिता से

    पारिवारिक ढाँचा टूटकर बिखर गया जहाँ—

    उस धरती में—विद्युतगामी मानव की

    आँखों के सामने बसी नदी तट की संस्कृति में

    बीते समय, नष्ट मूल्यों और

    माया सुखों के बारे में कुछ कहने वाली

    तुम्हारी पंक्तियाँ यूँ ही बिखरी रहेंगी

    पितृबलि के तन्दुलों जैसी!

    स्रोत :
    • पुस्तक : नैवेद्य (निवेद्यम्) (पृष्ठ 101)
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1996

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