कवि विजेंद्र के पचास साल बाद गाँव जाने पर
kavi vijendr ke pachas saal baad gaanv jane par
प्रियंकर पालीवाल
Priyankar Paliwal
कवि विजेंद्र के पचास साल बाद गाँव जाने पर
kavi vijendr ke pachas saal baad gaanv jane par
Priyankar Paliwal
प्रियंकर पालीवाल
और अधिकप्रियंकर पालीवाल
धरती कामधेनु से प्यारी
पचपन साल हुए अलगाए
इस मिट्टी की ख़ुशबू पाए
क्या इक छिन भी विलग रहा हूँ?
उस ख़ुशबू में बिलम रहा हूँ
आधी सदी बिताई कैसे
पानी बिना मछरिया जैसे
इसका जल अंजुरी में लेकर
सूरज-चंदा साखी रखकर
आज किसानी जिद्द अड़ूँगा
पिछड़ा-दुखिया जैसा भी हो
ऊसर-कल्लर कैसा भी हो
कलम-कुदाली-हँसिया-गैंती
हल के फल से भावी कल के
उर्वरता के छंद रचूँगा
लोक-राग संपृक्त रहूँगा
आँधी-आतप सभी सहूँगा
इस जनपद को नहीं तजूँगा
काशी तुझमें काबा तुझमें
मेरा तख़्तहज़ारा तुझमें
सच्ची अनगढ़ भाखा तुझमें
पके अन्न की आभा तुझमें
सोऊँ, जागूँ या ऐंडाऊँ
तेरे सदके जाऊँगा ही।
तेरी ख़ुशबू गाऊँगा ही।
- पुस्तक : दृष्टि-छाया प्रदेश का कवि (पृष्ठ 69)
- रचनाकार : प्रियंकर पालीवाल
- प्रकाशन : प्रतिश्रुति प्रकाशन
- संस्करण : 2015
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