पटना की सड़क पर पैदल ही चले जा रहे थे
मैंने दूर से ही पहचान लिया था―
वही बढ़ी हुई दाढ़ी, दुबली देह और लंबी नाक
हूबहू मेरे प्रिय कवि ही थे।
मैं भी उनके पीछे पीछे चलने लगा
एक जगह थककर वह पास ही पेड़ की छाया में बैठ गए
मैं उनके समीप नहीं जा सका
दूर से ही उन्हें निहारता रहा
समीप जाता भी तो क्या बात करता उनसे!
यही सोचकर, दूर से ही उनकी एक तस्वीर निकाल ली
तस्वीर में भी वे ऐसे ही दिख रहे थे
जैसे प्रतीत होते हैं अपनी कविताओं में
बिल्कुल ही अकेले और जीवन से भरपूर।
- रचनाकार : दीपक सिंह
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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