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कसूमल आरती

kasumal aarti

सुमन बिस्सा

सुमन बिस्सा

कसूमल आरती

सुमन बिस्सा

और अधिकसुमन बिस्सा

    नमन है तुम्हें

    थलवट के लाखीने तप-तेज को

    उदय अस्त की वेला में

    परिक्रमा देता सूरज

    करता है मन से कसूमल आरती।

    गाता है हरियश / पवन के हिंडोरे झूलते

    फिर से पनपते पुष्प।

    अमृत की झारी सम्हाले हाथ

    रात-रात भर भरें हाजरी

    चौकस चंद्रमा

    और मीठी नींद के हिंडोले

    सुनाए रावणहत्थे की मीठी तान

    ढोला-मारू के मधुर स्मृति- आख्यान—

    मोरचंग अलगोजों की रागिनी।

    नमन है तुम्हें / तुम्हारे अनमोल आवेग को

    गर्मी की लूएँ / गश खाकर

    गिरा दें नीची गर्दन / तुम्हारे तेज के आगे।

    शीतल हवा भयभीत-सी हो जाए

    तुम्हारे अडिग विश्वास की आड़ में

    वर्षा तुम्हारी कीर्ति की ख़ातिर

    हरे-भरे खेतों पर रचा दे छाँह

    और बसंत में फागुनिया छैले की नाई

    तुम्हारी ही रंगत में रंग जाए राजवी।

    नमन है तुम्हें / तुम्हारे तप-तेज को

    तुम्हारी माटी रचे इतिहास

    धर्म-कर्म के इकहरे खंभों पर

    भूगोल तुम्हारी कीर्ति को उजलाए।

    गगन के मेघ तुम्हें / झुक-झुककर करें सलाम,

    धरती तुम्हारी बलैयाँ लेवे

    ऐसा वैरागी संत / नमन है तुम्हें

    तुम्हारे लाखीने तप-तेज को।

    यों अनमनी क्यों बैठी हो तुम आज

    पहचानो अपनी ऊर्जा

    अगस्त्य की तरह पी लिया समंदर

    अपनी अथाह प्यास के बूते

    तुम्हारी कोख में ही विलीन हो गई पूरी सरस्वती

    ऐसी अपरबली तुम—

    नमन है तुम्हें

    तुम्हारे लाखीने तप-तेज को।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक भारतीय कविता संचयन राजस्थानी (1950-2010) (पृष्ठ 131)
    • रचनाकार : सुमन बिस्सा
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2012

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