कश्मीर हमर थीक
कश्मीर हमर दिव्य भाल, माथ परक टीक।
गुलमर्ग श्रीनगर ओ अमरनाथ हमर थीक।
हम सत्य प्रेम और अहिंसाक भक्त छी।
लेकिन प्रताप और शिवाजीक रक्त छी।
रणकाल महावीरी गदा हाथ रहैये
अरिमर्दिनीक खड्ग सदा संग चलैये
गीताक कुरुक्षेत्र आइ फेर जगैये
पृथ्वीक स्वर्ग ई हमर के छीनि सकैये?
अमूल्य हिम किरीट ई के कीनि सकैये?
कश्मीर ओहि मुकुट महँक हीर हमर थीक।
औ बाउ, आउ नहि अहाँ भस्मासुर जकाँ
रावण मरीच खर जकाँ, सुर ओ त्रिपुर जकाँ
हेऔ सुकर्ण कुंभकर्णक परि जुनि करू
महिषासुरक ओ रक्तबीजक बाट जुनि धरू।
देवासुर संग्राम केर इतिहास कहैये
ई पुण्यभूमि आन केओ लय न सकैये
राक्षस पिशाच खातिर ई तुणीर हमर थीक।
हम एक भारतीय छी, हिंदू वा मुसलमान
ईसाई सिक्ख पारसी अरु बौद्ध सभ समान
हम संग मिलि बढ़ैत छी, कहबैत 'जय जवान’
हम संग मिलि बढ़ैत छी, कहबैत 'जय किसान'
हमर देश हिंदुस्तान सुविशाल ओ महान
ओहि गौरवक प्रतीक, नगराज मूर्त्तिमान
सर्वोच्च ओ हिमालय से प्राचीर हमर थीक।
कश्मीर केर साल और चीर हमर थीक।
ओ सिन्धु और पंचनदीक नीर हमर थीक।
कल कल जल प्रपात केर क्षीर हमर थीक।
खेलमर्ग सँ उठैत ओ समीर हमर थीक।
पहलवान पहलगाम केर रणधीर हमर थीक।
बन्हबाक हेतु चोर कैं जंजीर हमर थीक।
सावर विमान बेधयबला तीर हमर थीक।
पेटन केर पेट काड़य तेहन वीर हमर थीक |
कश्मीर हमर माटि, हमर पानि, हमर अंग।
रहल, रहैछ ओ रहत, सदिकाल हमर संग।
बढ़ता जे करैक हेतु, देश अंग-भंग।
बुझताह केहन होइछै, केसर केर लाल रंग।
ओ लाल रंग फाग केर अबीर हमर थीक।
रणचंडिका झंकार ओ मंजीर हमर थीक।
ओ छंब पुंज गिलगिट हाजीपीर हमर थीक।
ओ रक्त भेल बर्फ गोसाँउनिक सीर हमर थीक।
चीनीक पाक कैल नवेदक खीर हमर थीक।
- पुस्तक : हरिमोहन झा रचनावली खण्ड-4 (पृष्ठ 123)
- रचनाकार : हरिमोहन झा
- प्रकाशन : जनसीदन प्रकाशन
- संस्करण : 1999
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