काली बाँहों से माथे का पसीना पोंछते हुए
वह उतरा और कार के रास्ते से साइकिल को अलग खड़ी करता हुआ
बाँस की डंडियों और झंडों को कैरियर से उतारने लगा।
अपने-अपने काम पर जाने से पहले
एक झंडा नीचे लैटर बाक्स के पास और दूसरा
जहाँ खन्ना कॉटेज लिखा है बिल्कुल उसके ऊपर लग जाए
इसका सबको इंतज़ार था।
खाने की मेज़ पर पड़ा लड़का
लेट दफ़्तर जाने के
दैनिक विलास में अधमुँदी आँखों से
पिता के सनक जाने के इस प्रमाण को देखता रहा।
सिर्फ़ लड़की ने इकेबाना क्लास के लिए उठते हुए कहा,
जिसमें ‘एवर’ पर ज़ोर था।
बग़ल और गर्दन से उठने वाली बू पर उसका कोई अख़्तियार नहीं था
लेकनि कोने में अदृश्य खड़े रहकर
उसने सबको खाना खा लेने दिया। वह सिर्फ़ बच्चों को
दिख रहा था जो
जब वह छत पर चढ़ा तो ‘ऐ झंडेवाले, इधर नहीं, उधर’ वग़ैरह
कहते रहे। दीवार फाँद वापस चाँदनी पर आकर
उसने देखा कि खीले में फँसने से पैर के पास पजामा फट गया है
और जल्दी में चप्पलें वहीं रह गई हैं।
नीचे आने तक
बचे हुए बाँस और झंडे ले जाए चुके थे
और हँसते हुए उसने खन्ना साहब को
बाबालोग के शरारती स्वभाव के बारे में बताया
जिन्होंने ज़ोर से एक बार ‘हरामज़ादे के बच्चों’ कहा
और सारा सामान बरामद करवा दिया।
वह बाहर पोर्च में रुका। गाड़ी निकाली जा रही थी
इसलिए एक तरफ़ खड़े होकर
उसने थैली में से कुछ निकाला और दीवार की तरफ़ मुँह करके
खाता रहा। फिर अंदर जाकर पूछा—
‘माताजी, नल आ रहा है?’
हाथ के इशारे को समझ कर वह आँगन की टोंटी पर झुक गया
और हथेलियाँ सुखाकर ‘आह’ कहने के बाद बोला,
‘झंडियाँ बढ़िया लहरा रही हैं। दूसरे वालों को
दूर से ही दिखेंगी। परसों प्रागदत्तजी गाड़ी लेकर ख़ुद आएँगे।’
माताजी रसोईघर में जा चुकी थीं और साहब जूते साफ़ करवा रहे थे
इसलिए जवाब नहीं दिया जा सका।
हाथ जोड़ने के बाद वह सड़क पर आया।
दोनों झंडे लगे हुए वाक़ई फड़फड़ा रहे थे।
साइकिल की गर्म सीट पर बैठते हुए
डंडे के सहारे जाँघों के नीचे फँसे हुए बाँसों को
वह मन ही मन गिन रहा था
और सोच रहा था कि अभी
तीन कोठियों का काम बाक़ी है
जिनमें से एक के दरवाज़े पर ‘कुत्ते से होशियार’ लिखा हुआ है।
- पुस्तक : पिछला बाक़ी (पृष्ठ 74)
- रचनाकार : विष्णु खरे
- प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
- संस्करण : 1998
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