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कंटकित मुकुट

kantkit mukut

अनुवाद : राजेंद्रा प्रसाद मिश्र

फणी मोहांति

फणी मोहांति

कंटकित मुकुट

फणी मोहांति

और अधिकफणी मोहांति

    बिना किसी प्रतियोगिता के

    शत्रु पक्ष के बिना रण-हुँकार के

    रमाबल्लभ ने हीरा, नील-जड़ित

    एक दुर्लभ सिंहासन

    कुछ ही दिनों में अख़्तियार कर लिया।

    हँसी-ख़ुशी के माहौल में

    ढेर की ढेर प्रार्थनाओं से

    स्तूपीकृत क़िले में

    एक आडंबरपूर्ण रंगीन सुबह

    रमाबल्लभ ने दसों दिक्पारों को साक्षी मानकर

    पवित्र गीता छूकर शपथ ली

    बची हुई ज़िंदगी

    देश के लिए उत्सर्ग कर देगा।

    शहर में जुलूस निकाला गया

    अगणित नर-नारी, देवी-देवता,

    गंधर्व, यक्ष-किन्नरियों की भीड़ में

    आतिशबाज़ी की चकाचौंध में

    लाख सूर्यों की रोशनी लिए

    विजय की जयमाल पहनी रमाबल्लभ ने।

    अभिषेक होने से पहले

    भद्र, नम्र, शांत और उदार

    रमाबल्लभ ने उपस्थित दर्शकों को

    चौंकाते हुए घोषणा की,

    कंटकित मुकुट पहन

    क्या कोई सुख की नींद सो सकता है?

    षड़यंत्रकारियों के तीरों की सेज से पीड़ित

    रमाबल्लभ ने चुप्पी साध ली

    साल-दर-साल बीतने लगे

    रमाबल्लभ एक ऐतिहासिक पुरुष बन गया

    हमारी दृष्टि की धुरा के दिगंत में।

    अनेक वर्षों के बाद

    कोई विदग्ध उपासक

    कुतूहलवश इतिहास का फटा पन्ना

    यदि उलटने लगे

    आवेग से अंधा हो जाएगा

    गर्व से झूम उठेगा

    और रमाबल्लभ की याद में

    घी की बाती जलाएगा

    शिवरात्रि के विलंबित प्रहर में

    टूटे मंदिर के आँगन में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविताएँ 1985 (पृष्ठ 52)
    • संपादक : बालस्वरूप राही
    • रचनाकार : फणी मोहांति
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1990

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