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देखा एक दिन मैंने अपनी प्रियतमा को

dekha ek din mainne apni priyatma ko

अनुवाद : अजय कुमार सिंह

सिद्धलिंगैया

सिद्धलिंगैया

देखा एक दिन मैंने अपनी प्रियतमा को

सिद्धलिंगैया

और अधिकसिद्धलिंगैया

    हत्या की पूर्ववती रात

    पकड़ लिए उन्होंने सूरज और चाँद

    बंद कर दिया तिजोरी में

    लपेटकर तिरंगे को ठूँस दिया उसके मुँह में

    और छीन ली उससे उसकी आवाज़

    हाथों में तलवार लिए

    झपट पड़े उस पर दसियों

    और उठा लिया उसे पके हुए फल की तरह

    चाहती थी वह उनके मुँह पर थूकना

    उन आने वालों के

    नहीं थे कोई चेहरे

    उमड़कर गड़प लेती है जो सात समुद्रों की तरह

    हो गई वह शिकार उनकी हवस की ज़ंजीरों से जकड़ी

    लड़ती रही वह शिकारी के फेंके गए जाल से

    मशालों के पहरों में हो गई अदृश्य

    उसकी जीवन-बेल फ़ौलादी जकड़ में फँसी

    बहाते-बहाते ख़ून गिर पड़ी धरती पर

    अँधेरे के राक्षस लगाते रहे बाज़ी

    खेलते रहे उसकी आँखों के कंचों से

    तौला उन्होंने उसका मंगलसूत्र

    नशे में धुत्त चिल्लाते रहे

    मारवाड़ी द्वारा दिए गए रेट के मुताबिक

    शरीर की पँखुरियों को एक-एक मसलकर

    उठा ले गए कहीं और

    देखा एक दिन मैंने अपनी प्रियतमा को

    देखा मैंने अपने को दर्पण में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 2)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : सिद्धलिंगैया
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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