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काँक्रीट

kankrit

नरेश सक्सेना

नरेश सक्सेना

काँक्रीट

नरेश सक्सेना

और अधिकनरेश सक्सेना

    आपस में सट कर फूटी कलियाँ

    एक दूसरे के खिलने के लिए जगह छोड़ देती हैं

    जगह छोड़ देती हैं गिट्टियाँ

    आपस में चाहे जितना सटें

    अपने बीच अपने बराबर जगह

    ख़ाली छोड़ देती हैं

    जिसमें भरी जाती है रेत

    और रेत के कण भी

    एक दूसरे को चाहे जितना भींचें

    जितनी जगह ख़ुद घेरते हैं

    उतनी जगह अपने बीच ख़ाली छोड़ देते हैं

    इसमें भरी जाती है सीमेंट

    सीमेंट

    कितनी महीन

    और आपस में सटी हुई

    लेकिन उसमें भी होती हैं ख़ाली जगहें

    जिसमें समाता है पानी

    और पानी में, ख़ैर छोड़िए

    इस तरह कथा काँक्रीट की बताती है

    रिश्तों की ताक़त में

    अपने बीच

    ख़ाली जगह छोड़ने की अहिमयत के बारे में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : समुद्र पर हो रही है बारिश (पृष्ठ 34)
    • रचनाकार : नरेश सक्सेना
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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