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कंपोज़िटर के लिए लोरी

kampozitar ke liye lori

अनाम कवि

अनाम कवि

कंपोज़िटर के लिए लोरी

अनाम कवि

और अधिकअनाम कवि

    गहरे स्याह रंग में डूबने से पहले

    जमा दिए हैं अक्षर जतन से जकड़कर फ़्रेम में

    उलटे अक्षरों से, रहा वास्ता आँखों का, जीवन भर

    तजुर्बे से छू-छूकर पहचाने जिनके आकार और नंबर

    जीवन के सीधे-सपाट और नंगे सच को

    देख-देखकर जमाते रहे उलटा

    क्या स्याह आसमान के फ़्रेम में जमें हैं तारे

    कुछ-कुछ इसी तरह

    उनका सीधापन वसंत में उछरेगा पेड़ों पर

    रात के फ़्रेम में वह भी कहीं जकड़ गया है, उलटे अक्षर-सा

    उसके नाम के अक्षर घिसपिट कर टूट चुके हैं

    बार-बार उनके चेहरों पर स्याही पोतकर

    उन्हें कर दिया ख़ारिज

    कोलतार की सड़क चढ़ी रही है रोलर पर

    पीले बीमार उजाले में

    प्रूफ़ जाँचे जा चुके हैं

    घर लौटते वक़्त

    सब कुछ दिखाई पड़ रहा है उलटा

    जैसे साइकिल का हैंडिल

    घर की तरफ़ होकर छापाख़ाने की तरफ़ हो

    जैसे उलटे छप रहे हों, पैरों के चिह्न

    ऐसे में चीज़ों को सीधा देखने

    ख़ास चश्मे की दरकार है

    करवट लेकर लेटी स्त्री का चेहरा

    लगता है, जैसे दूसरी तरफ़ हो

    रात की नीरवता में, रखी है रोटी तुम्हारे हिस्से की

    सोए हैं बच्चे खिलौनों की तरह

    जिनके लिए रास्ते भर

    मन में खिलती रहीं कहानियाँ

    रातरानी, कुमुदनी और रजनीगंधा की तरह

    थकी आँखें और अँगुलियाँ

    उलटे अक्षरों से गढ़ नहीं पाईं, सच का चेहरा

    जिस तरह फ़्रेम में पंक्तिबद्ध कसे अक्षर

    बदलकर करवट सो गए हैं, स्याही में

    तू सो जा, अपनी नींद के विपन्न एकांत में

    सो जा, सन्नाटा तोड़ती साइकिल की खड़खड़ में

    भौंकते कुत्तों के टोकते दुराग्रह में

    सन्नाटे के साथ बजती, सीटी, बूट और लाठी के

    नीरस संयोजन में

    स्मृति की स्लेट पर लिखी कहानियों को पोंछकर सो जा

    प्रतीक्षारत स्त्री की स्याह गड्ढ़ों में लुढ़ककर सो जा बेआवाज़

    सो जा कि लोगों की आँखों में

    सच को पढ़ने की रोशनी बची नहीं

    पंक्तियों के बीच, मार दिए गए

    या घोंट दिए गए सच को

    खोज निकालने का माद्दा, अब बचा नहीं

    सो जा कि साइकिल जा चुकी है नींद में

    और उलटे अक्षर, मरी हई मछलियों की तरह

    सुबह की सतह पर उतरा गए हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक अनाम कवि की कविताएँ (पृष्ठ 138)
    • संपादक : दूधनाथ सिंह
    • रचनाकार : अनाम कवि
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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