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कामना

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डॉ. अजित

डॉ. अजित

कामना

डॉ. अजित

और अधिकडॉ. अजित

    इतना अस्त-व्यस्त तुम्हें हमेशा देखना चाहता हूँ कि

    तुम भूल जाओ कि महीना तीस का है या इकतीस का

    सोमवार के दिन देर से उठो हड़बड़ा कर

    और कहो कल संडे के चक्कर में लेट हो गई

    तुम्हें देखना चाहता हूँ अनुमान के कौशल से

    पैर के पंजे से बेड की नीचे से स्लीपर निकालते हुए

    अपने अनुमान को परखती तुम्हारी मिचती-खुलती आँखें

    सृष्टि की सबसे दिव्य घटना होती हैं

    इतना अस्त-व्यस्त तुम्हें हमेशा देखना चाहता हूँ कि

    तिरछी लगी रहे बिंदी और तुम्हें इसका पता भी हो

    देखना चाहता हूँ तुम्हें रसोई में लाइटर खोजते हुए

    जबकि वो पड़ा हो ठीक तुम्हारे सामने

    देखना चाहता हूँ ख़ुद के पर्स की ख़राब चैन को

    आहिस्ता से बंद करते हुए

    ये सावधानी तुम्हारे निर्जीव प्रेम का

    सबसे जीवंत उदाहरण है

    देखना चाहता हूँ दूध की मलाई को फूँक से हटाते हुए

    अचानक आँख के सामने आई लट को

    कान की अलगनी पर टाँगते हुए

    तुम्हारा कान भटके हुए मुसाफ़िर का अरण्य हो जैसे

    इतना अस्त-व्यस्त तुम्हें हमेशा देखना चाहता हूँ कि

    तुम भूल जाओ मुझसे मिलकर रोज़मर्रा की ज़रूरी बातें

    और पूछो बेहद मामूली से मासूम सवाल

    मसलन

    मैं ज़िंदगी से क्या चाहता हूँ?

    बुरा नहीं लगता उपलब्धि शून्य जीवन?

    मेरे हँसने पर देखना चाहता हूँ तुम्हारी खीझ

    इतना अस्त-व्यस्त तुम्हें हमेशा देखना चाहता हूँ कि

    तुम भूल जाओ मैचिंग के रंग

    और जीने लगो अपने ही फ़्यूजन में

    तुम्हें अस्त-व्यस्त देखना ठीक वैसा है

    जैसे धरती को बरसों-बरस पीछे जाकर देखना

    जब बिना नियोजन के भी

    बची हुई थी ख़ूबसूरती

    तुम्हें यूँ बेतरतीब देखना

    उस दुनिया को देखना है

    जहाँ अभी भी बची हुई है

    लापरवाही बेहद ख़ूबसूरत अंदाज़ में

    जिसके भरोसे जीया जा सकता है

    इस मतलबी दुनिया में

    मुद्दत तक बेवजह

    पूरी ज़िंदादिली के साथ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : डॉ. अजित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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