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कमल-सरोवर

kamal sarovar

अनुवाद : हरिभजन सिंह

बावा बलवंत

बावा बलवंत

कमल-सरोवर

बावा बलवंत

और अधिकबावा बलवंत

    कमल-सर के किनारे पर

    गुलाबी शीत जीवन का

    प्याजी रूप की उष्मा

    कलाकारों की मिलती है।

    कलाकारों को मिल जाता है अपनी शक्ति का संदेश

    कमल के पास है जब तक

    स्वजीवन के लिए पानी

    तभी तक सूर्य पहुँचेगा

    नवीनोन्लास और नव-हास लेकर नित्य इस द्वारे

    कमल-सर के किनारे पर

    कमल सर के किनारे पर

    है यह संकेत पानी का—

    कमल-हृद् में नहीं यदि शक्ति-कर्मठता का पानी टुक

    प्रभाकर भी बचा सकता नहीं, ये प्राण ऐसे हैं

    कमल-सर रूप जनता में है जब तक नीर निज बल का

    खिलेगा दिन-ब-दिन जीवन

    बदल जाएगा यह जीवन

    अपने पास ही सामर्थ्य तो औरों से क्या आशा!

    कलाकारों को मिल जाता है अपनी शक्ति का संदेश

    कमल-सर के किनारे पर।

    कमल-सर के किनारे पर

    जो है चहुँओर निर्धनता

    यह कुर्मों का फल है औ' कोई भाग्य का अभिशाप

    यह उस मंदिर की करनी है

    खड़ा है जो नये लोहे औ' चाँदी के सहारे पर

    है मंदिर एक, पर खंडहर दिखाई दे रहे चहुँओर

    कमल-सर के किनारे पर।

    कमल-सर के किनारे पर

    नये व्रत की नई जगती में मेहनत के सितारे पर

    ज्वारे काटते है जो

    इधर पूँजी उगाएं जो

    उधर जो हल चलाते हैं

    सदा ही जूझते जाये हैं ये अति विकट पतझड़ से

    यही बंजर सजाते है

    हरे ऊसर इन्हीं से है

    यही जल-थल बसाते हैं

    कलाकारों का इनके साथ हो जाना ज़रूरी है

    कला इनके लिए है ये कलाकारी का उद्गम है।

    कला जो नित्य जीवन को बनाती आई है सुखमय

    कला जो हर अँधेरे को उजाला करती आई है

    बदल ही देगी ऋतु में कला उसको जो पतझड़ आज

    कमल-सर के किनारे पर

    अनोखा एक कंपन है

    कमल के हर कलश-दल पर

    बिना भूकंपही भूकंप-सा मालूम होता है

    है सुपरिणाम संभवतः 'तिलंगाना' के लावे का

    दबाया ही गया है जो

    'तिभागा' का है यह परिणाम या 'बलिया' की ज्वाला का

    इसी ज्वाला से नव आलोक या होने ही वाला है

    लगीं पंजाब की भी द्वंद्व के संकेत पर आँखें

    समय अब और ही होगा

    कमल-सर के किनारे पर

    है आवश्यक श्रमिकजन के लिए यक-प्राण हो जाए

    सभी मिलकर उठें, संग्राम में हिल-मिल के सब जूझे

    है मधुऋतु रही वह, आएगी संसार सारे पर

    वसंत आएगी जो आई समरकंद पर, बुखारे पर

    कमल-सर के किनारे पर

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 457)
    • रचनाकार : बावा बलवंत
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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