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कम से कम

kam se kam

अशोक वाजपेयी

अशोक वाजपेयी

कम से कम

अशोक वाजपेयी

और अधिकअशोक वाजपेयी

    उम्मीद के पास

    कम से कम एक घर तो होना चाहिए—

    हमारे अँधेरे के मुहल्ले में हो,

    चकाचौंध की दमकती कॉलोनी में भी सही,

    कहीं तो—

    सपनों में रंग बचे हैं, रोशनी।

    सच कहने की हर भाषा संदेह के घेरे में है—

    झूठ पर लगता है सबको भरोसा बढ़ गया है—

    सपने अपने टुच्चेपन से उबर नहीं पाते—

    मसीहा होना बंद हो गया है

    लेकिन छुटभैये

    असंख्य अवतारों में वापस रहे हैं—

    कुछ इधर हैं, कुछ उधर,

    बीच में रुकना-ठिठकना

    एक छूट गई आदत होकर रह गया है—

    ऐसे में

    कविता जैसी छोटी जगह में

    उम्मीद का घर कैसे बस सकता है?

    या कि छोटी जगह में रहकर ही उम्मीद

    और सब जगह छा सकती है?

    शब्दों में रोशनी हो तो शायद उम्मीद उधर सकती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कम से कम (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : अशोक वाजपेयी
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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