तपती जेठ के बाद
आषाढ़ में
देह को जब छूती है
मानसूनी बयार
पहली बार
तब हर्षित हो जाता है—
दग्ध तन-मन
धरती पर जब पड़ती है
बारिश की पहली बूँद
जुड़ा जाती है—
आत्मा
लेकिन डरता है मन
सावन-भादों की
मूसलाधार बारिश को सोचकर
जानता हूँ—
बढ़ जाएगा कष्ट
बस्तियों में रहने वालों का
चरमरा जाएगी
महानगर की व्यवस्था
खुल जाएगी
नगर निगम की पोल
बस्तियों की सँकरी गली में
बहने लगेगा—
सड़कों और नालियों का पानी
जल-मल मिलकर हों जाएँगे एक
घरों में घुस आएगा—
बरसाती गंदा पानी
आठ गुणा आठ के कमरे में
चौकी बन जाएगी
घर की सबसे ऊँची जगह
रख दिए जाएँगे जिस पर
घर के सारे माल असबाब
शरण लेंगे बच्चे उसी पर
जमेगी रसोई की व्यवस्था भी वहीं पर
उलीचना पड़ेगा
बार-बार
घरों में घुसा पानी
छोड़ देंगे उलीचना
थक-हारकर पानी
बस्ती में हो जाएगी
अघोषित जलबंदी
ख़बरों की भूखी मीडिया को
शायद मिल जाए—
एकाध दिन की ख़ुराक
कोसेंगे जी भर प्रशासन को
करेंगे उजागर
सरकार और प्रशासन की नाकमियों को
बढ़ाने के लिए
अपनी टी.आर.पी.
पाने को विज्ञापन
बारिश के पानी में
छपछपाते खेलते बच्चे
शायद बन जाए
अख़बार के पहले पन्ने पर समाचार
या पा जाए टेलीविज़न की बाइट में थोड़ी-सी जगह
देखकर ख़बरें
शायद आ जाएँ
पेज थ्री की औरतें
बाँटनें को राहत सामग्री
लेकिन इससे होगा क्या
नहीं मिल पाएगी निजात
कठिनाइयों से
इसीलिए कालिदास तुमसे एक विनती है—
बनकर दूत
हमारी ओर से
मेघ से कह पाओगे कि
जाकर बरसे
गाँवों के सूखे खेतों में
महानगर की बस्तियों में हम
चाहकर भी
स्वागत नहीं कर सकते
हर्षित करने वाले काले मेघों का।
- रचनाकार : राज्यवर्द्धन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.