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कैसे आना हुआ

kaise aana hua

प्रेम रंजन अनिमेष

प्रेम रंजन अनिमेष

कैसे आना हुआ

प्रेम रंजन अनिमेष

कैसे आना हुआ?

पूछता है फूल तितली से

कैसे आना हुआ?

पूछती रसोई बिल्ली से

कैसे आना हुआ?

पूछता है महाजन दरिद्र से

बिना ‘कैसे’

नहीं हो सकता आना!

कैसे आना हुआ?

पूछता है अजगर

हिरण के बच्चे से

पूछता जाल चिड़ियों से

शहर आदमी से

आना तो पड़ता है

लाख कहो

चला आया!

कैसे आना हुआ?

पूछा जाता हूँ

पहली नज़र से

आख़िरी सीढ़ी पर

झुलसती हैं एड़ियाँ

कैसे आना हुआ?

पूछकर पूछता नहीं वह कुछ

पूछने के पहले

चुप हूँ और

दुहरा दे जो फिर सवाल तो हो जाए मौत

कैसे कहूँ

इन्हीं पाँवों से

इन्हीं पंखों से

इसी आत्मा इसी हृदय से

आया तुम्हारे पास

कहता

तो कोई नहीं करता विश्वास

सोचता रहा था कई दिनों से

हवाओं को आवाज़ दूँ ऐसे ही

बैठूँ लहरों के क़रीब ऐसे ही

अकारण मिलूँ किसी से आधी रात

जाऊँ किसी के घर ऐसे ही

मगर पूछे जाने पर ‘आना हुआ कैसे’

कह दूँ ‘ऐसे ही’

तो होगा यह सबसे ख़तरनाक जवाब

कैसे हुआ आना

पूछता हूँ हर साँस से

हर मुस्कान से

हर धूल सनी सोच से

उसके पहले दूध-दाँत से

उसके पहले बोल से

कैसे आना हुआ—पूछता

दुनिया के नवागंतुक से

झेंपता वह झेंपता मैं!

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रेम रंजन अनिमेष
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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