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कबीर अब रात में नहीं रोता

kabir ab raat mein nahin rota

राज्यवर्द्धन

राज्यवर्द्धन

कबीर अब रात में नहीं रोता

राज्यवर्द्धन

और अधिकराज्यवर्द्धन

    रचा जा रहा है

    अधूरा सच

    फैलाया जा रहा है—

    स्वप्निल आकाश में

    झुटपुटे शाम के वक़्त

    सुबह की लालिमा होने का भ्रम कि

    सूरज तो बस उगने ही वाला है

    छोड़ो अब...

    कौन जाए अलख जगाने

    अंधकार में

    सुखी हैं सब

    मिट जाता है

    सत्य-असत्य

    रूप-अरूप का विभेद

    विवेक भी अब जागृत नहीं होता

    रहता है

    जानबूझकर मौन

    कबीर रात में

    अब दुखी नहीं होता

    दुनिया के बारे में सोचकर

    सोता रहता है

    रात के अंधकार में

    अलसाया

    सूरज उगने की प्रतीक्षा में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राज्यवर्द्धन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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