नौकरी एक चुड़ैल
naukari ek chuDail
नौकरी मेरी पीठ पर लदकर घर चली आती है
वह मेरे साथ सोफ़े पर पसर जाती है
जब मेरी उँगलियाँ जूतों के फीते टटोलती हैं
वह एक चुड़ैल की तरह मेरी आत्मा में उतर जाती है
वह मेरे पैर की पिंडलियों में मोज़ों के दबाव वाले
गहरे गोल चकत्ते बनाती है
उस वक़्त मैं अपने पैर चूमना चाहता हूँ
लेकिन मेरे होंठ वहाँ तक नहीं पहुँचते
चुड़ैल शामियाने ढहाने वाले
कुशल मज़दूर की तरह
मेरे शरीर का हर मोड़ ढीला करती जाती है
और मैं सोफ़े में धँसता चला जाता हूँ
सहसा सोफ़ा एक क़ब्र हो जाता है
मैं डर से चीख़ता हूँ
मेरी बीवी किचन से
पानी का गिलास छोड़कर दौड़ती है
बिटिया बालकनी से स्कूल डायरी
फेंककर भागती है मेरी तरफ़
वे मुझे समेट लेते हैं
चुड़ैल अपने काले पंख पसारे उड़ जाती है
और जाकर बिजली के खँभे पर उल्टा लटक जाती है
डिनर के प्राइम टाइम में
एक कोरस बजता है जिसमें एक सरदार वाहियात
चुटकुलों पर आँखें भींचकर ठहाके लगाता है
एक अभी-अभी पैदा हुआ युद्धा
अपने पिता के साम्राज्य को बचाने की तरकीबें गढ़ता है
और एक मॉडल अपने शरीर को चमकदार
और मुलायम बनाए रखने के नुस्ख़े बताती है
इस सबसे अलग मेरी बिटिया
मेरी रीढ़विहीन पीठ पर बैठकर पूरी दुनिया का
एक चक्कर लगाना चाहती है
जबकि मेरी बीवी मेरे सीने पर
अपना चेहरा धँसाकर मुझसे अपना दिन बाँटना
चाहती है
लेकिन चुड़ैल खँभे से तयशुदा
समय पर उतर आती है
और लाल हरी बत्तियों के रूप में
जगमगाती है एक चेतावनी की तरह
मैं घबरा जाता हूँ
बीवी का हाथ कंधे से और बिटिया का सिर अपनी गोद से
हटा देता हूँ
मैं आधी-आधी रात जागता हूँ
चुड़ैल को अपनी गोद में सँभाले
मैं उसे रात के तीसरे पहर तक साधना सीखता हूँ
हर रोज़ ज़िंदा रहने के लिए।
- रचनाकार : घनश्याम कुमार देवांश
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.