वे सिर फोड़ेंगे
उन्हें रंडी बोलेंगे
वे कुल्हाड़ी लेकर आएँगे
सरिया लहराएँगे
उन्हें नफ़रत है
बोलती लड़कियों से
वे डरते हैं
देश के बारे में सोचती लड़कियों से
वे जानते हैं
जेएनयू ऐसी जगह थी
जहाँ बेखटक बस्ता लादे
रात के एक बजे कोई लड़की
जा सकती थी लाइब्रेरी से हॉस्टल
वे जानते हैं कि
जेएनयू वाले
लड़कियों को देवी नहीं कहते
वहाँ लड़कियाँ मुक्कमल इंसानों की तरह
करती हैं बात
पूछती हैं सवाल
ऐसे ही सवाल करती लड़कियों की
ज़बान काटने आए वे नक़ाबपोश
उनके पास शब्द नहीं थे
तर्क निर्वासित थे उनकी दुनिया से
शस्त्र थे नफ़रत की शान पर चढ़े हुए
वामपंथ या कोई वाद सिर्फ़ बहाने हैं
वे करते हैं नफ़रत
मेधावी लड़कियों से
बौद्धिकता से
जेएनयू की लड़कियाँ जो
समझती हैं बाज़ार की चाल
समझती हैं टीवी का मायाजाल
जो पूछती हैं राष्ट्र में अपनी जगह
रोज़गार के आँकड़े
और रक्षा बजट के पेंच जानती हैं
ज़ाहिर है
ऐसी लड़कियाँ होती हैं ख़तरनाक
वे समझती हैं
सीता की अग्नि-परीक्षा का दर्द
बाज़ी पर लगी द्रौपदी से बतियाती हैं
अपाला और अहिल्या के जीवन को करती हैं डिकोड
जेएनयू की लड़कियाँ कस्तूरबा का एकाँत भी जानती हैं
वे डरते हैं जेएनयू से
वे डरते हैं
सदियों के तमस तोड़ ज्योतिर्मयी बनी लड़कियों से
- रचनाकार : प्रीति चौधरी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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