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जिस जगह बैठकर लिखने का उपक्रम करती हूँ

jis jagah baithkar likhne ka upakram karti hoon

प्रिया वर्मा

प्रिया वर्मा

जिस जगह बैठकर लिखने का उपक्रम करती हूँ

प्रिया वर्मा

और अधिकप्रिया वर्मा

    भूलने का अभिनय

    याद रखे रहने का अभ्यास

    शांत दिखने की शर्म को छिपाती हूँ जहाँ

    जहाँ मैं वह नहीं होती, जो वाक़ई में मैं सब के साथ होती हूँ

    या जहाँ मैं वह होती हूँ जिसे मैं बाक़ी सबसे बचाए रख पाती हूँ

    बचे-बचाए को दर्ज़ करना या बहते हुए क्षणों की तरलता में सिराना

    द्वार के तोरण, देव अर्चन के पुष्पों, दूल्हे की मोरी की तरह

    मैं जब इस जगह नहीं होती, इसे याद करती रहती हूँ

    जब मैं इस जगह नहीं होती, मेरी लय टूट जाती है

    जैसे कोई नामचीन नर्तकी किसी नए तबलची की संगत में

    चार ताल की दुगुन-तिगुन पर

    अपना पाँव बिठाने का करती है कुछ कम सफल प्रयास

    कहती कुछ और है, चीन्हती कुछ और

    वह नहीं कहती, जो सोचती है

    वह सोचती है कि पुरानी संगत वाला तबला यही है

    क्या उन पुराने अभ्यासी हाथों की थपकी को आती होगी उस लय की याद!

    क्या इस फ़र्श की देह को हिचकी आती होगी

    पाँवों के दूर चले जाने के बाद!

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रिया वर्मा
    • प्रकाशन : समकालीन जनमत

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