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जिन्नकथा-5

jinnaktha 5

अनुराधा महापात्र

अनुराधा महापात्र

जिन्नकथा-5

अनुराधा महापात्र

और अधिकअनुराधा महापात्र

    गहरी रात में मज़ार से निकलकर जिन्न को भी

    आकाश की छाया बराबर प्यार से पूर्ण पिता की तरह हरे काले पोखर

    के पार बैठी कन्या को वनबीवी की कथा सुनानी पड़ती है

    तभी चौक जाती है अज़ान गाँवों से उड़ आता है

    ईद का चाँद गोद की नाव में डोलती है जिन्न परी

    उन्नीसवीं सदी की नारी को नीलाग्नि-पद्मतारा पड़ता है बनना

    नारी के मन की पृथ्वी सौर-लोक है घास और माटी में नहीं बँधी रहेगी वह

    स्वर के झूले, प्राचीन चमगादड़ की तरह रात-दिन असंख्य वर्षों तक जगे रहेंगे

    अश्वत्थ, नीम, अनार और वट-गाछ प्रेम और मिलन की कभी थाह नहीं देते

    सब साम्य के पक्ष में पर आदमी के अँधेरे में कहीं भी कदंब-फूल नहीं खिलता

    दिलोजान स्निग्ध चाँद भी चोग़े के नीचे सोया रहता है

    जिन्न सोचता रहता है स्वप्नों की दुनिया में नक्षत्र की शुभ्रता लेकर

    तैरती रहती है आत्मा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 94)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवयित्री के साथ अनुवादक समीरबरन नंदी और प्रयाग शुक्ल
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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