कवि और दोस्त गोरख पांडेय की स्मृति को समर्पित
अनंत वासनाएँ झिलमिलाती हैं
असीम जिजीविषा
वासना की अतृप्त देवी का सम्मोहन दूर-दूर तक
ययाति की चिर तृषा
य' कौन है
जो आधी शताब्दी के किवाड़ पर
दस्तक देता है
घोड़े की तरह दौड़ते वसंत की टाप
सुनाई देती है दूर जाती हुई
य’ कौन है
जो देर रात लौटता है
और मद्धिम सुर में गुनगुनाता है:
'जब करूँगा प्रेम
पिघल उठेंगे
युगों के भूधर
उफन उठेंगे
सात सागर’
सुना है
पार्वती जब शिव से प्रेम करती थीं
हिमालय हिलने लगता था
बर्फ़ बन गई नदियाँ पिघलने लगतीं
हवा कुछ इस तरह चलती
जैसे उर्वशी के कपड़े
उड़ाए लिए जा रही हो
खिंच जाता यहाँ से वहाँ तक
सुंदर वितान
वो औरत कई सदियाँ पार करती
चली आई
जवानी की चमक धुँधली ज़रूर
पर कशिश थी बरक़रार
जैसे अमृता शेरगिल
दिलेर दिलकश दिलरुबा
उसकी आवाज़ में
कई आवाज़ें
कई शताब्दियाँ
कई कराह
कई दज़ला फ़रात मुअनजोदड़ो
कई लुटिएंस ला कार्बुजिए
कई टूटी हुई बिखरी हुई कविताएँ
कई गुएर्निका
मिले-जुले थे
तुमने मुझसे कभी प्रेम नहीं किया
तुम हमेशा फ़रमाइशें करते रहे
तुम मेरे दोस्त न बन सके
ख़्वाहिशें अँधेरे में छूटे तीर की तरह
निशाना ढूँढ़ती हैं
आवाज़ें आह्वान बन जाना चाहती हैं
प्यास गहरी प्यास बन रही है
बंदिशें वर्जनाएँ धराशायी हो रही हैं
ओ अनंत वासनाओ!
ओ गहरी प्यास!
ओ दमित आकांक्षा!
धूल-भरे अंधड़ की तरह उठो
ओ शताब्दियों की कराह!
ताबूत से बाहर निकलो और सजीव आलिंगन बन जाओ
ओ सम्मोहन!
दोस्ती की कोई नई धुन तो बनाओ!
- रचनाकार : अजय सिंह
- प्रकाशन : समालोचन वेब पत्रिका
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