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जल

jal

उद्भ्रांत

और अधिकउद्भ्रांत

    जीवन का

    सबसे ज़रूरी तत्त्व।

    यही है सत्व।

    ईश्वर की तरह

    धरे

    रूप अनेक।

    भावना-सा तरल।

    चुप-चुप छुपता

    आँख की ओट।

    सरल—

    जैसे नदी।

    छल से रहित

    छल-छल छलकता

    लाज से भरी

    अल्हड़ हँसी के

    फूलों को

    वक्ष पर लिए।

    विचार-सा

    कड़ी ठंड में

    बर्फ़ की तरह ठोस।

    पिघलने को

    सदा प्रस्तुत।

    महसूस करते ही

    ज़रा-सा ताप

    किरनीले छंद का।

    प्राणिता के

    निचले स्तर पर

    ले जाना उसे।

    भरेगा क्रोध में,

    जिसका शोधन

    करेगा प्रलय से।

    जल उठेगा

    जीवन।

    चरम तापमान पर

    वाष्प बन

    उड़ेगा ऊपर।

    रहेगा—

    कुछ भी नहीं

    भू पर।

    आँख होगी

    निष्प्रयोजन।

    होगा अदृश्य

    सृष्टि से।

    आँख में पानी ही नहीं जहाँ,

    सृष्टि बच पाएगी वहाँ—

    कैसे?

    और कब तक?

    स्रोत :
    • पुस्तक : जल (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : उद्भ्रांत
    • प्रकाशन : यश पब्लिकेशंस
    • संस्करण : 2019

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