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जैसे एक स्त्री जानती है

jaise ek istri janti hai

सविता सिंह

सविता सिंह

जैसे एक स्त्री जानती है

सविता सिंह

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    देह सुख की नदी है

    सहस्रों वर्षों से पता है

    उतने ही वर्षों से यह भी

    कि दुख का खंडहर है यह

    प्लास्टिक का नया सिक्का तो अब बनाया गया है इसे

    कौन जान सकता है लेकिन

    जैसे एक स्त्री जानती है देह को

    कौन जानता है बना सकती है वह इससे कैसी नाव

    पार कर सकती है कौन-सी सरिता

    कि मुक्त कर सकती है वही

    देह को देह से

    उठा सकती है जीवन पर पड़ा आख़िरी पर्दा

    स्रोत :
    • पुस्तक : नींद थी और रात थी (पृष्ठ 52)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2005

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