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जगन्नाथ रथ्य चक्र

jagannath rathy chakkar

अनुवाद : सूर्यनारायण 'भानू

श्री श्री

श्री श्री

जगन्नाथ रथ्य चक्र

श्री श्री

और अधिकश्री श्री

    पतित रे भ्रष्ट रे

    बाधा सर्प दष्ट रे!

    कांति-हीन शांति-हीन अक्षम बन

    शनि के रथ चक्रों के

    कुतुबों में फँसे पिसे

    दीन रे हीन रे!

    कौर बिना पक्षी ठौर बिना

    पक्षी रे भिक्षु रे!

    मित्रों से परिच्युत हो

    लोगों से तिरस्कृत हो

    समाज से बहिकृत हो

    च्युताशयी हृताशयी

    जितासु तुम हताश हो

    रोओ मत रोओ मत रे!

    रुधिर क्षुब्ध हो जावे

    नस-नस पिस-पिस जावे

    प्यार राख हो जावे

    रोओ मत रोओ मत रे!

    रे व्यथावशिष्ट रे

    रे कथावशिष्ट रे

    पतित रे भ्रष्ट रे

    बाधा-सर्प दष्ट रे

    रोओ मत रोओ मत रे!

    आए हैं आए हैं रे!

    जगन्नाथ रथ्य चक्र

    रथ्य चक्र रथ्य चक्र

    आए हैं आए हैं रे!

    डोल गया सिंहाचल

    पिघल गया हेमाचल

    दहल गया विंध्याचल

    विंध्याचल संध्याचल!

    उडते वे नग महान्

    निकला रे रथ विहान!

    चूर्णमान घूर्णमान

    दीर्णमान गिरि शिखर

    घूम घूम घूम रहे!

    पतित रे भ्रष्ट रे!

    बाधा-सर्प दष्ट रे!

    दौड़ो रे! दौड़ो रे! दौड़ो पड़ो रे!

    ग्रामों की सीमा में

    पेड़ों की सीमा में

    सूखे तट तटाक पर

    कटे फटे बोरों में

    मिट्टी के कलसों में

    जहाँ कहीं हो तम ही

    निराश रव दुखित मही

    फाँसी पीड़ा बंधन

    नालों में आत्म निधन

    धोखे में पतित बंधु!

    तुम्हारा व्यथित सिंधु

    समझ बूझता हूँ मैं!

    गर्मी में वर्षा में

    सर्दी में मरे मिटे

    तुम्हारी बाधाएँ

    वे सारी गाथाएँ

    समझ बूझता हूँ मैं!

    पतित रे भ्रष्ट रे!

    धोखे में फँसे बंधु

    तुम्हारे वास्ते मैं

    पकड़ कलम निज कर से—

    नभ के उस पर से

    वे जल्दी से धाते

    होहल्ला कर जाते

    जगन्नाथ रथ्य चक्र

    रथ्य चक्र प्रलय घोष

    इस भू पर लाऊँगा

    भूकंप कर दूँगा!

    नट शिव का निटल नयन

    भभक उठा

    निटल अनल धधक उठा

    निटलाग्नि ने निटलार्चि ने

    निटलाक्षि ने थम थम कर

    दुनिया को डरा दिया

    रे झूँ झूँ झटक फटक

    हिंसक चण ध्वंसक रण

    ध्वंसन चण हिंसक रण

    गरल पवन तोप दहन

    टोर्पीडो टोर्नाडो

    समर वही विलय वही

    या तो इस या रे उस पार करे

    संरंभी सम्मर्दी

    संक्षोभी संघर्षी

    गरल व्यर्थ बन गया

    कोलाहल तन गया

    पतित रे भ्रष्ट रे!

    सवन यह समर यह

    लोह बाज उड़ा वही

    ज्वाला फट फला यही

    दफ़नाए द्रोहों को

    दहलाए दोषों को

    स्वतंत्रता समरसता

    भ्रातृभाव सुहृद्भाव

    की जड़ पर बन कर घर

    जनता का शुभ धर कर

    शांति शांति कांति कांति

    सारा जग जीत सके

    यह सपना सत होगा

    यह सुख गुन शत होगा

    पतित रे भ्रष्ट रे!

    बाधा सर्प दष्ट रे!

    धोखे में पड़े बंधु

    रोओ मत रोओ मत रे!

    आए वे आए शत रे

    जगन्नाथ रथ्य चक्र

    रथ्य चक्र रथ्य चक्र

    आए हैं आए वे रे!

    आओ रे! आओ रे! दौड़ पड़ो रे

    यह जग तुम्हारा नंदन वन

    पाओ सुख पालक बन

    पतित रे भ्रष्ट रे

    बाधा सर्प दष्ट रे!

    रोओ मत रोओ मत रे!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 35)
    • संपादक : माधवराव
    • रचनाकार : श्री श्री
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
    • संस्करण : 1985
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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