जब कोई दरख़्त बूढ़ा होता है
jab koi darakht buDha hota hai
दरख़्त ज्यों-ज्यों बूढ़े होते हैं
अतीत की ओर चलने लगते हैं
दो शाख पेड़ बनने से पहले
सफ़ेद पत्तियों वाले पौधे से पहले
दो लाल किल्ले वाले अंकुर से पहले
बीज तक पहुँचकर भी
थमती नहीं उनकी यात्रा
वे पहुँचना चाहते हैं फल में
कुतरने वाली चोंच के खुरदरेपन में
मीठी लाल जीभ में
पंखों में, तपिश में
कण में अणु में
लौटने की यात्रा कभी सुखदायी नहीं होती
पखेरु उँगलियाँ थाम लेते हैं
बादल पाँव में उलझ पड़ते हैं
तिनके रास्ता रोक खड़े हो जाते हैं
भुनगे मचल लौट लगाने लगते हैं
बूढ़े होते दरख़्त
क्या कभी लौट पाते हैं वर्तमान में।
- रचनाकार : रति सक्सेना
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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