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जब बेटी जा रही थी

jab beti ja rahi thi

मिथिलेश कुमार राय

मिथिलेश कुमार राय

जब बेटी जा रही थी

मिथिलेश कुमार राय

और अधिकमिथिलेश कुमार राय

    जब बेटी जा रही थी

    उसकी माँ रो रही थीं

    मैंने उसके पिता को ढूँढ़ा

    नहीं मिला

    किसी ने बताया

    कि वह इस विरह के क्षण को

    बर्दाश्त नहीं करने की अपनी शक्ति के कारण

    पता नहीं कहाँ चला गया है

    अब वह बेटी की विदाई के बाद ही लौटेगा

    और बहुत दिनों तक चुप-चुप रहेगा

    उसकी माँ की रोते-रोते आवाज़ रुँध जाएगी

    और उसे बुखार भी सकता है

    जब बेटी जा रही थी

    उसका भाई बहुत सारे पसरे कामों को

    जल्दी-जल्दी समेट रहा था

    वह ज़रा-ज़रा-सी बात पर झुँझला उठता था

    कोई उसे टोके

    यह वह अभी पसंद नहीं कर रहा था

    उसे ऐसा लग रहा था

    कि वह बोलेगा तो रोने लगेगा

    फिर कैसे क्या होगा

    बेटी के जाने के समय

    जब चाची-काकी-दादी-मौसी

    और सारे अरिजन-परिजन

    रोती हुई रिवाजों को पूरा कर रही थीं

    दरवाज़े पर बँधी गाय पर मेरी नज़र पड़ी

    वह उदास-उदास आँखों से दृश्य को देख रही थीं

    और पगुराना भूल गई थी

    दरवाज़े पर आम का

    और अमरूद का जो एक वृक्ष था

    हवा बहने के बावजूद भी

    वह स्थिर खड़ा जैसे मौन था

    अब बेटी चली गई थी

    और ऐसा लगता था कि समूचा गाँव जैसे मौन हो गया है

    वह शाम जल्दी ढल गई

    और गाँव अनमने ढंग से रोटी चबाकर

    बिस्तर पर करवटें बदल रहा था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मिथिलेश कुमार राय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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