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इत्यादि अनुभवों की एक छोटी कविता

ityadi anubhwon ki ek chhoti kawita

साैमित्र मोहन

साैमित्र मोहन

इत्यादि अनुभवों की एक छोटी कविता

साैमित्र मोहन

और अधिकसाैमित्र मोहन

    मैं एक गिरफ़्त से

    बाहर गया था। अपने लिए ज़िम्मेदार होना

    मुश्किल है—

    किसने मुझे बताना था।

    समझने और करने में अंतर कितना होता है?

    यह कुछ क्षण भी हो सकता है और नौ साल भी। छोटी-सी

    तकलीफ़ समझ कर आदमी इसे टालता रहता है।

    अपने को नोचते और खुजलाते हुए मैं शामें

    और रातें बिताता रहा

    और ख़ुद को

    दीवारों में क़ैद कर सभ्य बना रहा।

    छोटी ख़ुराफ़ातों और झूठ में लपेट कर मैं अपने को

    थकाता रहा। टोह कर कपड़े बदलता रहा।

    सालों तक जो सिर्फ़ साल थे।

    एक आदत है जो महत्वपूर्ण बातों को भुलाते रहने से

    पड़ जाती है। लेकिन मेरा हाथ तो उस लड़की के

    स्तनों से खेल रहा था जिसे मैंने पहली

    बार सिनेमा में छुआ था और तमतमाया

    हुआ वापिस लौट आया था।

    बाँधने के लिए तब जिस्म था, नगर निगम के पार्क,

    अँधेरे रेस्तराँ और कुछ कर लेने का साहस।

    मैंने ग़ौर नहीं किया था कि इन सबमें हम अपने

    को छोड़ आते हैं

    लाते कुछ नहीं।

    मैं जब एक दुःस्वप्न से मुक्त हुआ तो मैंने

    देखा कि बारिश शुरू हो चुकी है और वातावरण

    मुझ पर हावी हो गया है।

    सड़े हुए पत्तों पर से मैं दौड़ रहा था और

    आकाश में

    पीछे छूटा पक्षी तेज़ी से

    उड़ता जा रहा था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधा दिखता वह आदमी (पृष्ठ 86)
    • रचनाकार : सौमित्र मोहन
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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